यदि चुनाव होता तो जिलाध्यक्ष फिर मैं ही बनता: भूदेव

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FARRUKHABAD : बीते 6 माह से भारतीय जनता पार्टी में जिलाध्यक्ष व मण्डल चुनाव को लेकर उठापटक मची थी। भाजपा में गुटबाजी के चलते मण्डल चुनाव कई बार निरस्त हुए तो वहीं प्रदेश स्तरीय नेताओं के द्वारा इस गुटबाजी की समस्या से बचने के लिए मनोनयन का तरीका निकाल लिया गया। इससे Bhoodev Rajpootभारतीय जनता पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष भूदेव राजपूत को अंदरूनी आघात जरूर लगा है। क्योंकि चुनाव से जिलाध्यक्ष नियुक्त होने पर भूदेव का जिलाध्यक्ष बनने के आसार कुछ ज्यादा ही लग रहे थे। भूदेव राजपूत का दावा है कि अगर जनपद में चुनाव कराया जाता तो उनका पुनः जिलाध्यक्ष बनना तय था।

पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बीते 11 मार्च को कानपुर के क्षेत्रीय कार्यालय फजलगंज में जनपद के शीर्ष 11 नेताओं को क्षेत्रीय अध्यक्ष बालचंद मिश्रा ने बुलाया था। जिसमें पूर्व विधायक सुशील शाक्य के अलावा मेजर सुनीलदत्त द्विवेदी, डा0 रजनी सरीन, कायमगंज की पूर्व चेयरमैन मिथलेश अग्रवाल, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मुकेश राजपूत, सत्यपाल सिंह, मान सिंह पाल, अमर सिंह खटिक, भूदेव राजपूत, विनय गुप्ता चेयरमैन शमसाबाद के अलावा पूर्व सांसद मुन्नूबाबू भी लिस्ट में शामिल थे। लेकिन इसी कारण से डा0 रजनी सरीन और मुन्नूबाबू बैठक में नहीं पहुंचे। जहां एक एक करके सभी 11 कार्यकर्ताओं को क्षेत्रीय अध्यक्ष के सामने बुलाया गया। बुलाये गये प्रत्येक नेता से तीन तीन नाम जिलाध्यक्ष के लिए मांगे गये थे। यह क्षेत्रीय व प्रदेश स्तरीय नेताओं में गुटबाजी से बचने का तरीका निकाला था। संभावना जतायी जाती है कि इन नामों में दिनेश कटियार का नाम सर्वाधिक लोगों के द्वारा दिया गया। जिसके बाद जिलाध्यक्ष की घोषणा मनोनयन से कर दी गयी। मनोनयन करके पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने 6 माह से चल रही गुटबाजी को खत्म करने का रास्ता तो निकाल लिया। लेकिन पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष इस मनोनयन प्रक्रिया से संतुष्ट नजर नहीं आये। पूर्व जिलाध्यक्ष भूदेव सिंह राजपूत को आंतरिक तौर पर आघात जरूर पहुंचा है।

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भाजपा मण्डल चुनाव के बाद जिलाध्यक्ष के चुनाव अगर किये जाते तो भूदेव राजपूत इस चुनावी दंगल में सबसे ताकतवर पहलवान माने जा रहे हैं, लेकिन मनोनयन के दाव पेंच ने उन्हें चारोखाने चित्त कर दिया है। इस सम्बंध में पूर्व जिलाध्यक्ष भूदेव राजपूत का कहना है कि मनोनयन कराना पार्टी का निर्णय है। उसे तो मानना ही पड़ेगा, लेकिन अगर जनपद में जिलाध्यक्ष पद पर चुनाव कराये जाते हैं तो 100 प्रतिशत उनकी टक्कर पर कोई दूसरा व्यक्ति नहीं था।

इस गुटबाजी के चलते भारतीय जनता पार्टी के सामने अब एक और बड़ी समस्या खड़ी हो गयी क्योंकि एक तो संगठन चुनाव 6 माह लेट हो गया तो वहीं अब नये जिलाध्यक्ष को जिला कमेटी, मण्डल अध्यक्ष, मण्डल कमेटी, मोर्चा प्रकोष्ठ बनाने में दो तीन माह का समय और लगेगा। जिससे आगामी संगठन की कार्यवाही को काफी अधिक प्रभावित करेगा। यही प्रक्रिया अगर अपने समय से हो जाती तो आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में पार्टी कार्यकर्ता जुट गये होते।