लखनऊ| आय से अधिक संपत्ति मामले में फंसे पूर्व की मायावती सरकार में परिवहन मंत्री रहे और वर्त्तमान बसपा प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर की मुश्किलें और बढने वाली हैं| इस मामले की जाँच कर रहे लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने सरकार से इस मामले की जाँच सीबीआई से कराये जाने की सिफारिश की है|
मालूम हो कि राजभर से जुड़े आय से अधिक संपत्ति मामले की जांच लोकायुक्त कर रहे हैं| लोकायुक्त ने पूर्व मंत्री को उनके आय के स्त्रोत कि जानकारी देने को कहा था जिसके बाद पूर्व मंत्री ने लोकायुक्त को जानकारियां उपलब्ध करायीं| इसमें राम अवध फाउंडेशन को दान में मिले लाखों रुपये की जानकारी है, लोकायुक्त ने जब इस संस्था के बारे में वाराणसी के रजिस्ट्रार चिट् फंड एंड सोसाइटी से जानकारी मांगी तो पता चला कि संस्था वर्ष 1997 में पंजीकृत कराई गई थी और वर्ष 1999 में संस्था का अस्तित्व समाप्त हो गया। वहीँ राजभर का कहना है कि उन्होंने वर्ष 2009 में संस्था पुनर्जीवित करा ली थी। इसके साथ ही पूर्व मंत्री ने वर्ष 2009 से 2011 के मध्य फाउंडेशन के दानदाताओं की लिस्ट और पैसों का भी विस्तृत ब्यौरा लोकायुक्त को दिया।
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परिजनों की आय के बारे में राजभर ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि उनके भाई और बहुओं ने वर्ष 2006-07 में कुछ लोगों को पैसा दिया था। वही पैसा बाद में वापस आया और कुछ पर ब्याज भी मिल रहा है। वहीँ, इससे पहले ये भी सामने आ चुका है कि राजभर ने अपने करीबियों की फर्म को बसों के चेसिस का ठेका दिलाने के लिए परिवहन विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव को टेंडर की प्रक्रिया रद्द करने के लिए चिट्ठी तक लिख दी थी। जब काम नहीं बना तो मंत्री ने स्वयं इन फर्मों को ठेके दिला दिए। ये खुलासा हुआ परिवहन विभाग के अधिकारियों से सवाल जवाब के बाद| फिलहाल लोकायुक्त ने इस घोटाले से जुड़े कई कागजात जब्त कर लिए हैं। सूत्रों के मुताबिक ऐसे ही कई ठेके लोकायुक्त की नज़र में हैं जिनकी जाँच के बाद ये पता लगाया जाएगा कि आखिर राजभर ने मंत्री रहते कितनी संपत्ति अर्जित की|
जाँच में लगे लोकायुक्त ने परिवहन विभाग के अधिकारियों को बसों की चेसिस बनवाने तथा सिटी बस सर्विस के ठेके की सभी फाइलों के साथ तलब किया और पूर्व मंत्री के समय में हुए कामों के बारे में विस्तार से जानकारी की। इन फाइलों की जाँच में लोकायुक्त को पूर्व मंत्री राजभर की वो सिफारिशी चिट्ठी भी मिल गयी जो मंत्री के तौर पर उन्होंने अपने प्रमुख सचिव को लिखकर चेसिस की टेंडर प्रक्रिया रद्द करने को कहा था।
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आपको बता दें केंद्र सरकार ने पूर्व की बसपा सरकार के दौरन 930 बसें खरीदने का पैसा दिया था। जिसके पहले चरण में 580 बसों की चेसिस के लिए टेंडर मांगे गए थे। जाँच में खुलासा हुआ कि आजाद कंपनी का टेंडर सबसे कम दर का था। जिसे उस समय के तत्कालीन परिवहन आयुक्त रामीरेड्डी ने अपनी स्वीकृति दे भी दी थी। सूत्रों के मुताबिक जब ये बात राजभर को पता चली तो उन्होंने ना सिर्फ प्रमुख सचिव को अपनी नाराजगी ज़ाहिर की बल्कि चिट्ठी लिख टेंडर रद्द करने का भी आदेश दे दिया था।
मंत्री का गुस्सा इतने पर भी शांत नहीं हुआ और उन्होंने पहले टेंडर प्रक्रिया रद्द कराइ और रामीरेड्डी को परिवहन आयुक्त के पद से भी हटा दिया। इसके बाद मंत्री के करीबी पंकज अग्रवाल को प्रमुख सचिव बनाया गया। मंत्री और पंकज ने मिलकर निर्णय लिया कि जो 580 बसों के टेंडर हुए थे, उनकी चेसिस विभाग की वर्कशॉप में बनवा ली जाए और बाकि की 350 बसों के लिए नए सिरे से टेंडर मांगें जाएं। सामने आया है कि राजस्थान के जयपुर की कंपनी कमल कोच को बिना टेंडर के ही काम दे दिया गया। जानकारों के मुताबिक राजभर पर क़ानूनी शिकंजा कसने के लिए इतने सबूत और गवाही पर्याप्त हैं जल्द ही उनपर कार्यवाही की जा सकती है|
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