देश की राजनीति उत्तर प्रदेश राज्य के रहमो करम पर चलती है। देश को सबसे अधिक प्रधानमंत्री देने वाला ये प्रदेश हमेशा चर्चा में रहता है। कहा जाता है कि राजनीति के अपराधीकरण की शुरुवात यहीं से हुयी है। पहले जहाँ दबंग और बाहुबली राजनेताओं के संरक्षण में काम करते थे वहीँ अब वो स्वयं बिना किसी मुखौटे के राजनीति में हैं और तो और इनमें से कुछ मंत्री पद का सुख भोग चुके हैं तो कुछ भोग रहे हैं। इन बाहुबलियों की दबंगई ऐसी है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री भी इनके सामने नतमस्तक होते रहे हैं। जब इनको गुस्सा आता है तब सरकारें हिल जाती है, लेकिन ये वहीँ कायम हैं जहाँ ये कल थे।
हरिशंकर तिवारी-
जिस समय दाउद सरीखे अपराधी क्राइम का ए-बी-सी-डी सीख रहे थे उस समय उत्तर प्रदेश में हरिशंकर तिवारी अपना साम्राज्य स्थापित कर चुके थे। हरिशंकर के बाहुबल का डंका विदेशों तक बजता था। स्व. वीरेंद्र शाही और हरिशंकर तिवारी के बीच होने वाले गैंगवार अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में छाए रहते थे। बीबीसी पर इनकी खबरें प्रसारित की जाती थी। कहा जाता हैं कि तिवारी ने यूपी-बिहार और पडोसी देश नेपाल तक अपना साम्राज्य बढ़ा लिया था। गोरखपुर के बुजुर्ग बताते हैं कि तिवारी ने ऐसे लोगों की टीम बना रखी थी जो उनके एक इशारे पर बिना कुछ सोचे समझे कुछ भी करने पर उतारू रहते थे।
आज 76 साल के तिवारी किसी बुजुर्ग की तरह लगते हैं। आप यदि पहली बार देखते हैं और कोई आप से इनका नाम बता दे तो एक बार तो आप को लगेगा की आपसे झूठ बोला जा रहा है। आम आदमी हो या फिर माफिया इनका जलवा आज भी इतना है कि दोनों ही इनसे बच कर रहना पसंद करते हैं। छात्र जीवन में गोरखपुर शहर में एक किराए के कमरे में रहते थे।
फ़िलहाल तिवारी पूरी तरह राजनीति को समर्पित हैं। एक बेटा कुशल उर्फ़ भीष्म तिवारी खलीलाबाद से बसपा सांसद हैं। दूसरा विनय तिवारी अभी राजनीतिक पारी आरंभ होने का इंतजार कर रहा है। विनय विधानसभा और लोकसभा चुनाव हार चुका है। तिवारी जब से राजनीति में आये तीन चुनाव हारे हैं। रसूख इतना की सरकार किसी की भी हो मंत्री पद मिलना तय रहता है। एक बार तो जब तिवारी मंत्री थे तब माफिया मंत्री के नाम पर काफी हो हल्ला भी हुआ- लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। इनका भांजा गणेश शंकर विधान परिषद् अध्यक्ष है। कहा जाता है की एक बार तो तिवारी मुख्यमंत्री पद तक पहुँच गए थे लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया।
1998 कल्याण सिंह द्वारा बसपा को तोड़कर बनाई सरकार में साइंस और टेक्नोलॉजी मंत्री 2000 राम प्रकाश गुप्त की भाजपा सरकार में बने स्टाम्प रजिस्ट्रेशन मंत्री 2001 राजनाथ सिंह की भाजपा सरकार में भी मंत्री कायम 2002 मायावती की बसपा सरकार में भी मंत्रिमंडल के सदस्य 2003-07 मुलायम सिंह की सरकार में भी रहे मंत्री 3 बार निर्दलीय विधायक रहे। 2 बार कांग्रेस के टिकट पर जीते- 1 बार तिवारी कांग्रेस से भी जीते।
अतीक अहमद-
पढ़ाई में फिसड्डी- क्राइम में अव्वल। ये है अतीक अहमद। अपराध की दुनिया में अपने नाम का डंका बजाने के बाद वो प्रदेश की राजनीति ढोल बजाने लगा। बसपा विधायक राजू पाल की हत्या का आरोप लगा, जेल गए। जिससे प्रदेश को पता चल गया की राजनीति में भी वर्चस्व कायम करने का मन बना कर आया है। हत्या- लूट और रंगदारी के तक़रीबन 35 मुकदमें दर्ज हैं। आतंक इतना की इलाहाबाद में दहशत का दूसरा नाम अतीक अहमद माना जाता है। अतीक उस फूलपुर सीट से सांसद रहा है जहां से देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु सांसद थे। इलाहाबाद की नगर पश्चिमी सीट से लगातार चार बार के विधायक अतीक ने आपने छोटे भाई अशरफ को समाजवादी पार्टी की साईकिल पर चढ़ाकर यह सीट उसे दे दी। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि- वर्ष 2004 में अतीक को फूलपुर से लोकसभा चुनाव जो लड़ना था।
अतीक के आतंकराज से डरी-सहमी और ऊबे मतदाताओं ने नवंबर 2004 में हुए प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा के राजू पाल को जिता दिया। राजू पाल भी अपराधी प्रवृत्ति का था जनता को लगा कि अतीक से अच्छा है छोटे अपराधी को जीता दिया जाये। लेकिन-उनको क्या पता था कि अतीक क्या कर सकता है। आरोप है कि अतीक अहमद और अतीक के छोटे भाई अशरफ ने मिलकर राजू पाल की हत्या की साजिश रची और हत्या करवा दी। सपा के शासन में ये सब हुआ था तो- पार्टी के ही बाहुबली सांसद और उसके छोटे भाई के खिलाफ कोई कार्रवाई कैसे हो सकती थी। बसपा सरकार बनी तो माया ने अतीक को उसकी हैसियत याद दिला दी। फ़िलहाल आज भी अतीक के रसूख में कोई कमी नहीं आयी है।
बृजेश सिंह-
यूपी के पूर्वांचल ही नहीं देश के कई सूबों में संगठित अपराध का सुप्रीमो। फ़िलहाल उड़ीसा से गिरफ्तार हो चुका है।अपनी पहचान छुपाकर भुवनेश्वर में रियल स्टेट का कारोबार चलाता था डॉन ब्रजेश। भुवनेश्वर- बिग बाजार के बाहर से गिरफ्तार हुए बृजेश सिंह पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने पांच लाख रुपए का इनाम रखा था यहाँ एक बात गौर करने वाली ये है की लगभग 20 वर्षों तक किसी ने भी इसकी शक्ल नहीं देखी थी। ब्रजेश सिंह की गिरफ़्तारी भी जिस नाटकीय ढंग से हुई उससे राजनैतिक साजिश की बू आ रही थी। 20 वर्षों की अथक मशक्कत के बाद यूपी पुलिस जिस बृजेश सिंह का चेहरा तक नहीं पाई उसकी गिरफ़्तारी आसानी से दिखा दी गई। गायब रहकर भी पूर्वी यूपी में बृजेश सिंह का आतंक इतना रहा कि पूरे इलाके में रेलवे और दूसरे सरकारी ठेकों से लेकर कोयले तक की दलाली में बृजेश सिंह का सिक्का चलता था। गायब रहते हुए भी बृजेश ने राजनीतिक संरक्षण के रास्ते तलाश लिए थे। भाई चुलबुल सिंह को बीजेपी में लगाया। भतीजा विधायक बन चुका है।
वर्तमान समय में बृजेश गैंग के अधिकतर बड़े अपराधियों की या तो हत्या हो चुकी है या फिर वो किसी न किसी नेता के संरक्षण में अपना काम चला रहे हैं। बृजेश को सबसे बड़ी चोट उस समय लगी जब उसके सबसे खास अवधेश राय की हत्या हो गयी। अवधेश के छोटे भाई अजय राय ने विधायक हो जाने के बाद शांति धारण कर ली। बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय जिसे ब्रजेश का मुंशी कहा जाता था। राय बृजेश गिरोह को अघोषित तौर पर चलाते थे। लेकिन- आरोप है कि पूर्वांचल के एक और माफिया मुख्तार अंसारी ने अपने शूटर मुन्ना बजरंगी से कृष्णानंद राय की हत्या करवा दी। बनारस में हुई अवधेश राय की हत्या में भी मुख्तार पर आरोप है।
बृजेश के अपराधी जीवन का आरंभ आजमगढ़ की बाजार में पिता की हत्या होने के बाद हुआ। इलाकाई दबंग ठाकुरों ने बृजेश के पिता को गोली मारकर और चाकुओं से छलनी कर हत्या कर दी थी। पहले बृजेश ने पिता की हत्या का बदला लिया और उसके बाद बिहार में बृजेश सिंह और वीरेंद्र टाटा ने अपना कॉकस बना लिया। चंदौसी से बोकारो और जमशेदपुर तक इसकी तूती बोलती थी। कोयले की उगाही के साथ ही रेलवे- पीडब्ल्यूडी और दूसरे सरकारी विभागों की ठेकेदारी इन लोगों की कमाई का मुख्य जरिया था। बृजेश ने जेजे अस्पताल मुंबई में दाउद इब्रहिम के बहनोई पारकर की हत्या का बदला इस तरह लिया की देश कांप उठा था। बृजेश के सबसे खास साथी वीरेंद्र टाटा की हत्या बनारस से मिर्जापुर के रास्ते में श्री प्रकाश शुक्ल गैंग ने कर दी थी। जिसके बाद ये माफिया अंडरग्राउंड हो अपनी गतिविधियाँ चलाने लगा।
धनंजय सिंह-
बहुजन समाजवादी पार्टी से वर्तमान समय में जौनपुर से सांसद। इनपर हत्या- लूट और रंगदारी जैसे कई मामले दर्ज हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र नेता के तौर पर आरंभ करने वाले धनंजय सिंह का साथ पहले लखनऊ के इलाकाई माफिया अरूणशंकर शुक्ल उर्फ अन्ना के साथ ही अम्बेडकर नगर के माफिया अभय सिंह से हुआ। हालांकि बाद के दिनों में ये तीनो अलग हो गए। धनंजय सिंह इन दोनों से आगे निकलने का वाकया भी कम रोचक नहीं है हुआ ये कि एक पुलिस मुठभेड़ के बाद पुलिस ने दावा किया कि धनंजय सिंह नाम का अपराधी मार गिराया गया। कुछ दिनों बाद धनंजय सामने आया और आरोप लगाया की यूपी पुलिस उसे जान से मार देना चाहती है।
इसके बाद धनंजय नेताओं का दुलारा बन गया आगामी विधान सभा चुनाव में उतरा जिसमें मां ने अपने बेटे की जान बचाने की भावुक अपील मतदाताओं से की और धनंजय चुनाव जीत गया। विधायक बनने के बाद भी इसका आचरण नहीं बदला अपने परम मित्र अरूण उपाध्याय के भाई की हत्या का आरोप लगा। उसकी लाश मिर्जापुर से मिली। इस छल के बाद अरूण ने कहा कि जब तक इस हत्या का बदला नहीं ले लिया जाएगा- वे अपने भाई की तेरहवीं नहीं करेगा। पिछले लोक सभा चुनाव में इंडियन जस्टिस पार्टी के प्रत्याशी की लाश एक पेड़ से लटकी मिली जिसका आरोप भी धनंजय पर लगा लेकिन क़ानूनी कार्यवाही में ये निर्दोष साबित हुआ। अपने एक और दोस्त अतुल सिंह के साथ भी इसका विवाद हुआ। फिलहाल ये लोकतंत्र की मंदिर कही जानी वाली संसद के सदस्य है और कभी जो पुलिस इनके पीछे भागती थी आज इनको सलाम करती नज़र आती है।
धर्मंपाल उर्फ़ डी.पी.यादव-
पश्चिम उत्तर प्रदेश के शराब माफिया। दर्जनों के हिसाब से संगीन आरोप। दिल्ली- उत्तराखंड हरियाणा तक फैला रसूख का साम्राज्य। बेटा विकास देहस के चर्चित नीतीश कटारा हत्याकांड में सजा पाया- जेल में बंद। यादव पर वर्ष 1989 में गाजियाबाद जिले के कविनगर थाने में पहला मुकदमा दर्ज हुआ। वर्त्तमान में हत्या के 9- डकैती के 2 मुकदमों के अलावा अपहरण- गैंगस्टर और टाडा जैसे मुकदमे शामिल हैं।इसके साथ ही जेसिका लाल हत्याकांड में भी यादव और उसके बेटे विकास का नाम आरोपियों में शामिल है। राष्ट्रीय परिवर्तन दल बनाया इसके पहले कई दलों में रहे। २००७ में अपने दल से पत्नी उर्मिलेश सहित विधायक चुने गए बाद में बसपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। एक बार प्रकाश में तब आये जब 2012 चुनाव में अखिलेश यादव ने इनकी छवि के चलते सपा में लेने से इंकार कर दिया था। वैसे तो हमेशा ही कोई न कोई विवाद इनके साथ जुड़ा रहता है लेकिन बदायूं जिले की बिसौली तहसील के गांव रानेट के पास उनकी हाल ही में स्थापित यदु शुगर मिल की बात करें- तो उसकी स्थापना दबंगई और बेईमानी से ही की गयी है। मिल के डायरेक्टर छोटे पुत्र कुणाल यादव को बनाया गया है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि ये मिल ज़बरन लिखाई गयी जमीनों पर बनी है।
मुख्तार अंसारी-
स्वयं के बनाये कौमी एकता दल से मऊ विधान सभा से विधायक। बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के आरोपी। 1989 में मुलायम सिंह के पहले मुख्यमंत्रित्वकाल में मुख्तार को सत्ता का संरक्षण मिला। उसके बाद अंसारी के विरुद्ध सारे मामलों में सीबीसीआईडी की जांच लगवा दी गई। कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनी तो मुख्तार के खिलाफ `टाडा´ लगा दिया गया। बसपा और बीजेपी की पहली साझा सरकार में मायावती ने मुख्तार को जेड प्लस श्रेणी सुरक्षा मुहैया करा दी। इसके बाद मुख्तार का कद इतना बढ़ता गया कि वह माफिया से पूर्वांचल के मुसलमानों का रहनुमा हो गया।
तीसरी बार जब धरती पुत्र मुलायम सिंह की सरकार बनी तो मुख्तार अपने चरम पर थे। ये वो दौर रहा था जिसमें मुहम्मदाबाद के आवास जिसे `फाटक´ कहा जाता है इसमें प्रदेश ही नहीं बल्कि अन्य सूबों के भी अपराधियों को संरक्षण दिया जाने लगा। इसी दौर में एक धाकड़ डीएसपी शैलेन्द्र सिंह ने एक एलएमजी पकड़ी जो मुख्तार के पास पहुंचनी थी। मुख्तार का तो कुछ नहीं बिगड़ा हाँ! शैलेन्द्र सिंह को ही पद से इस्तीफा देना पड़ा था। कहा जाता है कि किसी बहुत बड़े नेता ने मुख़्तार को बचाने में अपनी सारी ताकत लगा दी थी। इसी दौरान मऊ दंगों में मुख्तार का दबंग रूप देखने को मिला। मुलायम की पूर्व सरकार में गाजीपुर में दो दर्जन से अधिक मुख्तार विरोधियों की हत्या हुई। लेकिन उनमें कुछ भी नहीं हुआ।
वर्ष 2007 में विधान सभा चुनाव हुए मायावती ने सरकार का गठन किया और मुख्तार को अपना संरक्षण दे दिया है। लोकसभा चुनाव में मुख़्तार के भाई अफजाल को गाजीपुर का और मुख्तार को बनारस का टिकट थमा दिया है। 22 फरवरी 2009 को करण्डा में एक सपा समर्थक ठेकेदार की हत्या हुई जिसमें भी मुख्तार का हाथ माना गया लेकिन कार्यवाही के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ।
राजा भैया-
कुंडा विधान सभा से विधायक। अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार में कारागार मंत्री। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने पोटा लगाया था। पोटा- गैंगस्टर एक्ट समेत कई मामलों में आरोपी रहे कुंडा से निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया मुलायम सिंह की सरकार में पहले भी (2005 में) मंत्री रहे हैं। राजा भैया के विरुद्ध 45 आपराधिक मुकदमे लंबित हैं। पोटा के आरोपों से बरी हैं। वर्ष 2010 दिसंबर में एक इलाकाई नेता ने स्थानीय निकाय चुनावों के समय राजा भैया सहित एक सांसद- विधायक और विधान परिषद सदस्य समेत 13 लोगों के विरुद्ध जान से मारने के प्रयास का मामला दर्ज कराया था। इस मामले में राजा भैया को गिरफ्तार करके उनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया। इससे पहले साल 2002 में बीजेपी विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने अपने अपहरण करने का आरोप लगाया था। कारागार मंत्री राजा भैया जेल में सजा भी काट चुके हैं। वर्ष 1993 में हुए विधानसभा चुनाव से कुंडा की राजनीति में कदम रखने वाले राजा भैया को उनकी सीट पर अभी तक कोई हरा नहीं सका है। इलाके में तत्काल न्याय दिलाने वाले युवराज की छवि है।
इनके साथ ही प्रदेश के लगभग हर एक जिले में कोई न कोई बाहुबली अपनी धमक से अपनी सत्ता चला रहा है। इनमें पीस पार्टी के विधायक अखिलेश सिंह- सपा सांसद ब्रजभूषण सिंह- पूर्व विधायक अजय प्रताप सिंह’ लल्ला भैया’- पूर्व बसपा विधायक रामसेवक सिंह- अरुण शंकर शुक्ला ‘अन्ना महाराज’- ओम प्रकाश श्रीवास्तव ‘बब्लू’- रामगोपाल मिश्रा- बादशाह सिंह-अमर मणि त्रिपाठी ये सभी वो नाम हैं जो जिस जिले में रहते हैं वहां सिर्फ इनका ही नाम सरकार है भले ही प्रदेश में सरकार किसी की भी हो।
ये तो हैं घोषित माफिया- दबंग या फिर बाहुबली। कुछ ऐसे भी हैं जो कहने को तो सफेदपोश हैं लेकिन काम इनके ऐसे हैं की ये माफिया भी इनके आगे नगण्य साबित होते हैं। इनमें बाबू सिंह कुशवाहा- अनंत मिश्रा अन्टू शामिल हैं जिन्होंने प्रदेश में एनआरएचएम् में हजारों करोड़ों का घोटाला किया।
बसपा-भाजपा-कांग्रेस-आरएलडी-आइएनडी-पीसपार्टी-कौमी एकता दल सभी ने बाहुबलियों और दबंगों को टिकट दिता और उनमें बहुत से जीत कर आज विधानसभा में बैठे भी हैं। तो आप ने देखा कैसे नैतिकता की बड़ी बड़ी बात करने वाले राजनैतिक दलों ने पहले इन सभी को संरक्षण दिया और उसके बाद ये इतने ताकतवर हो गए की मंत्री पद तक ले लिया और ये नैतिकता के ठेकेदार इनके सामने बेबस होते चले गए। यदि देखा जाये तो इसके पीछे इतना सा कारण ये है की इनके इलाके में इनकी इतनी चलती है की ये जिसको चाहते हैं वहीँ वोट पड़ता है इसीलिए नेता इनके आगे पीछे घूमते हैं।