आप मानें या न मानें, लेकिन यह सच है कि हिमाचल के जिला किन्नौर में आज भी बहुपति प्रथा कायम है। यहां एक महिला के कई पति होते हैं। यह एक ऐसा इलाका है, जहां पर पत्नी को पति के मरने के बाद उसका वियोग सहने का मौका ही नहीं मिलता।
यही वजह है कि इस क्षेत्र में विरह के गीत गाए ही नहीं जाते हैं। यदि इस तरह के गीत हैं भी तो वे देवता की आज्ञा से ही गाए जाते हैं।
किन्नौर में आधुनिकता के दौर में इस प्रथा का प्रचलन कम हो गया है, लेकिन इस क्षेत्र में कई परिवारों में यह प्रथा अभी भी कायम है। एक ही परिवार के तीन या चार पांच भाई एक ही स्त्री से शादी करते हैं।
जब कोई एक भाई अपनी पत्नी के साथ अकेले कमरे में संभोग कर रहा होता है तो वह संकेत के तौर पर कमरे के बाहर लगे खूंटे पर अपनी टोपी टांग देता है।
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ऐसा माना जाता है कि किन्नौर स्वर्ग है, जहां पर पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान समय बिताया था। इसी कारण इस प्रथा के यहां पर अवशेष अभी भी यहां हैं। किन्नौर घाटी में ही किन्नर कैलाश है। यहां पर शिव तपस्या करते हैं। पांडवों से जुड़ी इस क्षेत्र में अनेक गाथाएं हैं।
इस क्षेत्र में सर्दी के मौसम में महिलाएं एवं पुरुष अवकाश पर रहते हैं, क्योंकि सर्दियों में भारी हिमपात के कारण वहां उनके पास कोई काम नहीं होता।
अवकाश के दौरान महिलाएं एवं पुरुष संगीत व नृत्य का घर के अंदर ही आनंद उठाते हैं। इन गीतों में स्थानीय उपमाओं की प्रधानता होती है। महिलाएं सारा दिन पुरुषों के साथ गप्पें मारती हैं और पहेलियां बुझाती हैं। फिर रात वहीं गुजारती हैं।
इस प्रथा को घोटुल प्रथा कहते हैं। घोटुल घरों में युवक-युवतियां आपस में शारीरिक संबंध भी कायम करते हैं। बहु पति प्रथा होने के कारण स्त्री परिवार की मुखिया मानी जाती है। उसका कर्तव्य होता है कि प्रत्येक पति व अपनी संतानों की सही ढंग से देखभाल करे। परिवार की सबसे बड़ी स्त्री को गोयने कहा जाता है। उसके पास घर के भंडार की चाबियां रहती हैं। उसके सबसे बडे पति को गोर्तेस कहते हैं यानी घर का स्वामी। उसकी आज्ञा से पूरा परिवार मानता है। स्त्री सारे पतियों को समान दृष्टि से देखती है। वह किसी से पक्षपात नहीं कर सकती। शराब यहां के भोजन के साथ अनिवार्य है। पुरुष दुखी होने पर शराब और तंबाकू का सेवन करते हैं और महिलाएं दुखी होने पर गीत गाती हैं।