FARRUKHABAD : समाजवादी पार्टी सरकार ने एक समय आवास विकास स्थित राममनोहर लोहिया अस्पताल की नींव रखी थी। करोड़ों रुपये की गाड़ी कमाई इस पर खर्च की गयी। कई सरकारें आयीं और चली गयीं, सफेद हाथी बना लोहिया अस्पताल अपनी लाचारी और उदासीनता पर आज भी आंसू बहा रहा है। समय का चक्र घूमा फिर सपा की सरकार सूबे में बनी। जनता के अंदर फिर से विश्वास पनपा कि अब लोहिया अस्पताल को सुविधाओ से लैस किया जायेगा। लेकिन राजनीति का केन्द्र हो चुके लोहिया अस्पताल में डाक्टरों से ज्यादा कर्मचारी संगठन पनप गये हैं। हर वर्ग का कर्मचारी अपना संगठन बनाकर उसकी आड़ में कामचोरी से बाज नहीं आ रहा है। बड़े अधिकारियों को तो छोड़ें छोटे सफाईकर्मचारियों की स्थिति भी यह है कि लोहिया अस्पताल में सफाई के नाम पर हजारों रुपये सरकार से लेने वाले यह कर्मचारी बाल श्रमिकों से मरीजों का गंदा कूड़ा कचरा साफ करवाते हैं और खुद जेबों में हाथ डालकर राजनीति में पूरा दिन निकाल देते हैं। सब कुछ जानते हुए भी अधिकारी इस विषय पर कुछ भी बोलने से कतराते हैं। मजे की बात तो यह है कि सूबे के श्रम संविदा बोर्ड के अध्यक्ष का आवास जिस मोहल्ले में है, उसी मोहल्ले में बाल श्रमिकों से सफाई कर्मचारी बड़े मजे से लोहिया अस्पताल में झाडू लगवा रहे हैं।
कर्मचारियों की राजनीति का केन्द्र बने लोहिया अस्पताल में डाक्टर से लेकर सफाई कर्मचारी तक राजनीति करते हैं, इस राजनीति के आड़ में यह सफाईकर्मी किस हद तक कामचोरी कर सकते हैं इसका नजारा तस्वीरों में साफ नजर आ रहा है।
अस्पताल में दवाइयों की कमी, डाक्टरों की कमी के साथ_साथ ही मरीजों के साथ बदसलूकी किये जाने की बातें अब आम हो चलीं हैं। यहां तक तो ठीक था लेकिन स्थित यह हो जायेगी कि मासूमों को मरीजों के द्वारा गंदे किये गये या उनके मरहमपट्टी मे खून से सड़ांध मारते कूड़े कचरे को साफ करना पड़ेगा। यह किसी ने नहीं सोचा था। प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अखिलेश यादव तो हैं ही, जनपद में दो दो लाल बत्तियां फर्राटे भर रहीं हैं लेकिन वहां भी वोट बैंक की राजनीति का शिकार आम जनता ही है। कहीं न कहीं वोट बैंक ही आड़े आ जाता है। अधिकारी सफाई कर्मचारियों से संगठन के दबाव में कुछ करने से कतराते हैं, तो वहीं राजनीतिक लोग वोट बैंक के चक्कर में अपनी आंखों पर पट्टी चढ़ाकर निकल जाते हैं और नौनिहाल स्कूल जाने की उम्र में लोहिया अस्पताल के भव्य भवन में कचड़ा साफ करने में ही पूरा दिन गुजार देते हैं।
अधिकारियों पर इस तरह का दबाव कर्मचारी संगठनों ने बना रखा है कि सब कुछ अपनी आंखों से देखने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं आ रहा है। पूर्व जिलाधिकारी मुथुकुमार स्वामी ने जिस समय जनपद का चार्ज संभाला था उसी दौरान उन्होंने लोहिया अस्पताल का निरीक्षण किया था। शिकायत मिली की लोहिया अस्पताल में सफाईकर्मचारी ठीक से काम नहीं करते। जिस पर डीएम ने सीएमओ से कामचोर सफाईकर्मचारियों की लिस्ट मांगी और उन पर कार्यवाही के निर्देश दिये थे। लेकिन जब कार्यवाही करने का नम्बर आया तो मुख्य चिकित्साधिकारी बगलें झांक कर बैठ गये व आज तक किसी भी कर्मचारी पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी। आलम यह है कि सफाई कर्मचारी काम तो करते ही नहीं साथ में अधिकारियों को संगठन की धमकी भी दे देते हैं। जिसके चलते अधिकारी भी पचड़े में पड़ना नहीं चाहते।
सीएमएस डा० नरेन्द्र बाबू कटियार की बात को सुनें तो ताज्जुब होगा। उनका कहना है कि सफाईकर्मचारी शराबी जुआरी हैं। वह उनसे डरते नहीं। कार्यवाही की बात कहें तो हड़ताल की चेतावनी दे देते हैं। इसलिए हमने तो सफाई कर्मचारियों से कहना ही छोड़ दिया। मुख्य चिकित्साधिकारी राकेश कुमार से कामचोर सफाई कर्मचारियों के लिए कहा था लेकिन सीएमओ कार्यवाही नहीं कर रहे हैं। उन्होंने इस बात को बखूबी कबूला कि लोहिया अस्पताल में सफाई कर्मचारी बाल श्रमिकों से भी काम करवाते हैं लेकिन कार्यवाही के नाम पर उनकी भी जवान लड़खड़ा गयी और ठीकरा सीएमओ के सिर में दे मारा।
इसके साथ ही नरेन्द्र बाबू कटियार ने अपना दर्द वयां करते हुए कहा कि मामला चाहे श्रम संविदा बोर्ड के चेयरमैन के मोहल्ले का हो या किसी नेता के। वोट बैंक की बजह से कोई कुछ कहना नहीं चाहता।