FARRUKHABAD : तत्कालीन जिलाधिकारी मुथुकुमार स्वामी द्वारा बर्खास्त किये गये 43 में से 9 नगर पालिका कर्मचारियों को उच्च न्यायालय से बड़ी राहत मिल गयी है। न्यायालय ने जिलाधिकारी के आदेश के विरुद्व अपील में गये 9 कर्मचारियों के बर्खास्तगी आदेश को स्थगित करते हुए अग्रिम आदेशों तक यथा स्थिति बनाये रखने के निर्देश दे दिये हैं।
नगर पालिका में अनियमित रूप से नियुक्त 43 कर्मचारियों को जिलाधिकारी मुथुकुमार स्वामी ने बीते 30 नवम्बर 2012 को बर्खास्त कर दिया था। कर्मचारियों की नियुक्ति में कई प्रकार की अनियमिततायें जिलाधिकारी ने पायीं थीं। इन कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए चयन समिति का अनियमित रूप से गठन किया गया और उसमें जिलाधिकारी द्वारा नामित किसी अधिकारी को सम्मलित भी नहीं किया गया था। रिक्तियों का प्रकाशन भी किसी प्रमुख समाचार पत्र में नहीं कराया गया और नियुक्ति के समय कोई पूर्णकालिक अधिशासी अधिकारी भी तैनात नहीं था। प्रकरण की जांच नगर मजिस्ट्रेट द्वारा करायी गयी थी। नगर मजिस्ट्रेट ने अपनी जांच रिपोर्ट जिलाधिकारी को प्रस्तुत कर दी थी। जिस पर जिलाधिकारी मुथुकुमार स्वामी ने नगर पालिका के 43 कर्मचारी पूर्व अधिशासी अधिकारी के पुत्र सुबोध कुमार गुप्ता, शरद बाजपेई, अमित कुमार शुक्ला, विजय सिंह वर्मा, शिवराम सिंह, एमआईसी के अनुचर प्रतीक सारस्वत, संतोष कुमार बाजपेई बेलदार, प्रमोद कुमार चौकीदार, विजय प्रताप सिंह माली, संजय सिंह अनुचर, मोहम्मद रफीक राज मिस्त्री, जितेंद्र कुमार बेलदार, कौशलेंद्र सिंह तथा सफाई कर्मचारी नन्हें, राजकुमार, सर्वेश, राजू, सुशीला, संजीव, संजय, सतीश सिंह, सुंदरी देवी, सतीश, महेंद्र, रवींद्र, प्रदीप कुमार, संजीव, कालीचरन, सुभाषचंद्र, जयप्रकाश, प्रमोद कुमार, दीपक, अनिल, जयकिशन, सुनील, कुंवर सिंह, सुभाष, महेंद्र, शीला, गिरीश, उवैश खां तथा दीपक कुमार के नाम सम्मिलित थे।
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जिसके बाद बर्खास्त कर्मचारियों ने बर्खास्तगी आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी। उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एपी शाही ने याचिकाकर्ता विजय वर्मा, शिवराम सिंह, विजय प्रताप सिंह, कौशलेन्द्र सिंह, रफीक, उवैश खां, प्रमोद यादव, संजय सिंह, जितेन्द्र के बर्खास्तगी आदेश को स्थगित करते हुए सेवा में बहाली के आदेश दिये हैं।
विदित हो कि नगर पालिका फर्रुखाबाद में एक अप्रैल 1998 से 1 मई 2005 के बीच समूह ग एवं घ के पदों पर अनियमित रूप से नियुक्त कर्मचारियों का वर्ष 1998 एवं 2000 में वेतन रोका गया था। जिससे क्षुब्ध होकर समूह ‘ग’ व ‘घ’ के 44 कर्मियों ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद में याचिका कर दी थी। जिसमें न्यायालय ने 4 मई 2001 में याचिका को निरस्त करते हुए आदेश दिये थे कि जब तक जिलाधिकारी नियुक्तियों की जांच कार्यवाही नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा 34 के अन्तर्गत पूर्ण नहीं करते हैं तब तक कार्य के बदले कर्मचारियों को वेतन भुगतान किया जाये। न्यायालय के आदेश के अनुपालन में समस्त सम्बंधित कर्मचारियों का वेतन भुगतान प्रारंभ कर दिया गया था। परन्तु इसके बाद पालिका परिषद द्वारा जांच के अभिलेख विलम्ब से प्रस्तुत किये गये परन्तु 27 जून 2012 को जिलाधिकारी ने नगर मजिस्ट्रेट को जांच अधिकारी नामित कर दिया।
नगर मजिस्ट्रेट ने अपनी जांच आख्या 29 सितम्बर 2012 को जिलाधिकारी को सौंप दी। नगर मजिस्ट्रेट ने अपनी जांच आख्या में उल्लेख किया था कि नगर पालिका परिषद फर्रुखाबाद की नियुक्ति सम्बंधी मूल पत्रावली से स्पष्ट है कि नगर पालिका अध्यक्ष ने नियुक्ति के सम्बंध में कोई विज्ञापन किसी लोकप्रिय प्रमुख समाचार पत्र में प्रकाशित नहीं कराया। जिससे अनेक लोग जानकारी के अभाव में आवेदन से वंचित रह गये एवं चयन प्रक्रिया नियमानुसार सम्पन्न नहीं की गयी। चयन समिति में न तो जिलाधिकारी की ओर से नामित कोई सदस्य सम्मलित किया गया और न ही चयन समिति में अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति अथवा अल्पसंख्यक वर्ग का सदस्य रखा गया है। पूरी चयन प्रक्रिया अनियमितता पर आधारित बताते हुए नियुक्तियों को अनियमित करार दे दिया गया। जांच आख्या में यह भी कहा गया कि नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा 74 के अन्तर्गत नियुक्ति हेतु नगर पालिका अध्यक्ष एवं अधिशासी अधिकारी अधिकृत हैं परन्तु तत्समय शासन से कोई अधिशासी अधिकारी तैनात ही नहीं था। प्रकाश अधीक्षक राजा बाबू से अधिशासी अधिकारी के रूप में हस्ताक्षर कराकर नियुक्ति पत्र जारी कर दिये गये, जो कि पूर्ण रूप से अनियमित हैं।
जिलाधिकारी डा0 मुथुकुमार स्वामी बी ने अपने आदेश में कहा था कि नगर मजिस्ट्रेट द्वारा पक्षकारों को सुनने के उपरांत प्रस्तुत की गयी जांच आख्या से सहमत होकर अंतिम निर्णय लेते हुए इन कर्मचारियों की सेवायें समाप्त की जाती हैं।