फर्रुखाबाद: समय चाहे जितना भी लम्बा हो जाये 11 साल चाहे हजारों सालों के बराबर समय खा गये हों लेकिन संसद पर शहीद हुई कमलेश कुमारी के मासूम बच्चों व परिजनों के कलेजे में धधक रही आग ठंडक नहीं पा रही थी। सरकार ने कमलेश के परिजनों को सांत्वना के तौर पर काफी कुछ मुहैया कराया लेकिन धन से मन की शांती नहीं मिलती। क्योंकि संसद पर हमले के गुरु अफजल को फांसी पर न लटकाया जाना शहीदों के परिजनों के दिलो दिमाग में खटक रहा था। जिसके चलते कमलेश कुमारी के अलावा अन्य शहीदों के परिजनों ने सरकार द्वारा दिये गये मेडल भी वापस कर दिये थे। आखिर 11 साल बाद सरकार चेती और तिहाड़ जेल में बंद आतंकी अफजल गुरू को फांसी पर लटका दिया गया। 9 फरवरी शहीद के परिजनों के दिलो दिमाग में मोहर लगा गयी, क्योंकि यह शहीद कमलेश कुमारी के मासूम बच्चों व उसके परिवार के लोगों के लिए अहम दिन है। जिसका उन्हें बेसब्री से इंतजार था।
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दिल्ली स्थित देश के संसद भवन में 13 दिसम्बर 2011 को रोज की भांति सुरक्षाकर्मी तैनात थे। उधर जनपद की निवासी कमलेश कुमारी अपने परिवार के साथ दिल्ली के विकासपुरी कालोनी में रह रही थी। बड़ी बेटी ज्योती स्कूल में थी। बच्ची जब स्कूल से आयी तो समाचार चैनलों में उस मासूम ने संसद पर हो रही फायरिंग का नजारा देखा। कुछ आतंकियों ने संसद पर गोलियों की गड़गड़ाहट से पूरे संसद भवन के साथ-साथ सरकार तक की नींव हिलाकर रख दी। कमलेश कुमारी के परिवार में भी हड़कंप मचा। कुछ देर बाद कमलेश का रक्त रंजित चेहरा टीवी चैनल पर दिखा तो परिवार में कोहराम मच गया। 9 लोगों को आतंकियों का निशाना होना पड़ा। जिसमें पड़ोसी जनपद कन्नौज के सिकंदरपुर छिबरामऊ की मूल निवासी कमलेश भी शामिल थी।
कमलेश का मायका फर्रुखाबाद के नरायनपुर गांव में था। कमलेश की मौत की खबर जब नरायनपुर आयी तो पूरे जनपद में शोक की लहर दौड़ गयी। जिसके बाद आतंकी अफजल को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और कमलेश के परिजनों को काफी कुछ आर्थिक सहायता भी दी गयी। लेकिन शहीद के पिता राजाराम व पति अबधेश के कलेजे में ठंडक नहीं आ रही थी। क्योंकि सरकार अफजल को फांसी देने में लापरवाही और ढिलमुल रवैया अपनाये हुए थी। आखिर थक कर कमलेश के साथ अन्य आठ शहीदों के परिजनों ने सरकार द्वारा दिये गये राष्ट्रपति पदक भी सरकार को वापस कर दिये।
11 साल के लम्बे इंतजार के बाद आखिर शहीद कमलेश के रूह को सच्ची श्रद्धांजलि व शांती मिली, जब फांसी का फंदा संसद हमले के मास्टर माइण्ड अफजल के गले में पड़ा और अत्याचार व खौफ का वह शरीर हवा में झूल गया। कमलेश के परिजनों की आज खुशी का ठिकाना नहीं।
घटना के समय कमलेश के दो पुत्रियां थीं। बड़ी बेटी ज्योती 9 साल की थी, जो उस समय सेन्ट्रल स्कूल दिल्ली में कक्षा पांच की पढ़ाई कर रही थी। छोटी बेटी स्वेता डेढ़ साल की थी जो उस समय यह भी नहीं जानती थी कि आखिर हुआ क्या। लेकिन समय के साथ-साथ दोेनो बेटियां अब बड़ी हो गयी हैं। 13 साल की स्वेता व ज्योती अब 20 साल की हो चुकी है। उन्हें यह अब भली भांति पता चल गया कि आखिर आज कौन सा महत्वपूर्ण दिन है। ज्योती फतेहगढ़ के पीडी महिला डिग्री कालेज में बीएससी द्वितीय वर्ष की छात्रा है जो डाक्टर बनना चाहती है। वही स्वेता अब 13 साल की हो गयी है और वह कक्षा 8 में सेन्ट्रल स्कूल फतेहगढ़ में पढ़ाई कर रही है। दोनो बेटियां अपने नाना राजाराम व पिता अबधेश के साथ फर्रुखाबाद के आवास विकास में नया मकान बनवाकर रह रहे हैं।
सरकार से पदक वापस लेंगे कमलेश के पिता
13 दिसम्बर 2011 को संसद हमले में पुत्री के शहीद हो जाने के बाद न्याय के इंतजार में कानून के तराजू के पलड़े की तरफ 11 सालों से निहार रहे कमलेश के पिता का कहना है कि वह तो अफजल को फांसी देने के मामले में बिलकुल ही भरोसा नहीं कर रहे थे। क्योंकि इस मामले में राजनीति शुरू हो गयी थी। संसद के हमले के बाद में हुए 26/11 मुम्बई हमले के आतंकी कसाब को पहले फांसी दे दी गयी तो इस घटना से उनका विश्वास बिलकुल ही उठ गया था। लेकिन सरकार देर आयी परन्तु दुरुस्त आयी। अफजल को फांसी देने के बाद अब शहीद कमलेश को मिले अशोक चक्र को वापस लेने के लिए परिजन तैयार हो गये हैं। कमलेश के पिता का कहना है कि वह अब सच्चे मन से कमलेश का वह सम्मान सरकार से वापस लेंगे।
घटना चक्र
अफ़ज़ल गुरु को नई दिल्ली के तिहाड़ जेल में आज सुबह 8 बजे फॉंसी दे दी गई. भारत के संसद के हमले के अभियुक्त को फॉंसी देने में एक दशक से भी ज़्यादा वक्त लगा. इस पूरे सफ़र पर एक नज़र-
13 दिसंबर, 2001 – पांच चरमपंथियों ने संसद पर हमला किया. हमले में पांच चरमपंथियों के अलावा सात पुलिसकर्मी सहित नौ लोगों की मौत हुई.
15 दिसंबर, 2001 – दिल्ली पुलिस ने जैश-ए-मोहम्मद के चरमपंथी अफ़ज़ल गुरु को गिरफ़्तार किया. उनके साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एसएआर गिलानी को भी गिरफ़्तार किया गया. इन दोनों के अलावा अफ़शान गुरु और शौकत हसन गुरु को गिरफ़्तार किया गया.
29 दिसंबर, 2001- अफ़ज़ल गुरु को दस दिनों के पुलिस रिमांड पर भेजा गया.
4 जून, 2002-अफ़ज़ल गुरु, एएसआर गिलानी, अफ़शान गुरु और शौकत हसन गुरु के ख़िलाफ़ मामले तय किए गए.
18 दिसंबर, 2002- अफ़ज़ल गुरु, एएसआर गिलानी औऱ शौकत हसन गुरु को फॉंसी की सजा दी गई. अफ़शान गुरु को रिहा किया गया.
30 अगस्त, 2003-जैश-ए- मोहम्मद के चरमपंथी गाजी बाबा, जो संसद पर हमले का मुख्य अभियुक्त को सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने दस घंटे तक चले इनकाउंटर में श्रीनगर में मार गिराया.
29 अक्टूबर, 2003- मामले में एएसआर गिलानी बरी किए गए.
4 अगस्त, 2005- सुप्रीम कोर्ट ने अफ़ज़ल गुरु की फॉंसी की सजा बरकरार रखा. शौकत हसन गुरु की फॉंसी की सजा को 10 साल कड़ी कैद की सज़ा में तब्दील किया गया.
26 सितंबर, 2006- दिल्ली हाईकोर्ट ने अफ़ज़ल गुरु को फॉंसी देने का आदेश दिया.
3 अक्टूबर, 2006-अफ़ज़ल गुरु की पत्नी तबस्सुम गुरु ने राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सामने दया याचिक दायर की.
12 जनवरी, 2007-सुप्रीम कोर्ट ने अफ़ज़ल गुरु की दया याचिका को खारिज़ किया.
16 नवंबर, 2012- राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अफ़ज़ल गुरु की दया याचिका गृह मंत्रालय को लौटाई.
30 दिसंबर, 2012-शौकत हसन गुरु को तिहाड़ जेल से रिहा किया गया.
10 दिसंबर, 2012- केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि अफ़ज़ल गुरु के मामले की पड़ताल करेंगे.
13 दिसंबर, 2012- भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा में प्रश्न काल के दौरान अफ़ज़ल गुरु को फॉंसी दिए जाने का मुद्दा उठाया.
23 जनवरी, 2013- राष्ट्रपति ने अफ़ज़ल गुरु की दया याचिका खारिज की गई.
03 फरवरी, 2013- गृह मंत्रालय को राष्ट्रपति द्वारा खारिज याचिका मिली.
09 फरवरी, 2013- अफ़ज़ल गुरु को नई दिल्ली को तिहाड़ जेल में सुबह 8 बजे फॉंसी पर लटकाया गया.