कभी MBBS का छात्र था अफजल गुरु

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imagesनई दिल्‍ली। जिस आतंकवादी अफजल गुरु को शनिवार की सुबह 8 बजे तिहाड़ जेल में फांसी दिये जाने के बाद यहीं पर दफना दिया गया वो कभी होनहार छात्र हुआ करता था। शायद आपको यकीन नहीं होगा, अगर परिस्थितियां उसे आतंकवाद के दलदल में नहीं धकेलतीं, तो शायद आज वो बारामूला का प्रसिद्ध डा. मोहम्‍मद अफजल गुरु होता और उसकी क्‍लीनिक पर मरीजों की भीड़ लगी होती। जी हां अफजल वो व्‍यक्ति था, जो भारत की सरजमीं पर पैदा हुआ, लेकिन पड़ोसी देश पाकिस्‍तान के कुछ आतंकी संगठनों के चक्‍कर में पड़ने के बाद उसने अतंकवाद का रास्‍ता अख्तियार कर लिया। चलिये एक नजर डालते हैं उसके जीवन पर। अफजल का जन्‍म बारामूला में हुआ और वहीं उसने पढ़ाई की। बचपन से ही अफजल काफी होनहार छात्र हुआ करता था। जब उसने दसवीं और फिर बारहवीं की परीक्षा फर्स्‍ट डिवीजन में पास की, तो उसके परिवार की खुशी देखने लायक थी।
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नहीं चाहता था आतंकवादी बनना
अपने मां-बाप की इच्‍छा को पूरा करने के लिये अफजल ने प्रीमेडिकल परीक्षा दी और उसमें अच्‍छी रैंक हासिल की। अफजल ने एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू की। एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान ही उसने आईएएस परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। तभी वो जम्‍मू-कश्‍मीर लिबरेशन फ्रंट का सदस्‍य बन गया और छात्र जीवन में ही उसका संपर्क में कुछ आतंकियों से हुआ। उसने फ्रंट के साथ मिलकर आतंकवाद की ट्रेनिंग भी हासिल की। ट्रेनिंग तो ले ली, लेकिन जब देश के खिलाफ जंग की बात आयी, तो अफजल को कुछ अच्‍छा नहीं लगा और उसने बीएसएफ के समक्ष जाकर आत्‍मसमर्पण कर दिया। चूंकि उसने किसी आतंकी वारदात को अंजाम नहीं दिया था, लिहाजा उसे सजा नहीं हुई ओर अफजल फिर से सामान्‍य जीवन में लौट आया। उसने बारामूला छोड़ दिया और सोपोर आकर अपना खुद का बिनेस शुरू किया। उसने कमीशन एजेंसी खोली और ब्‍याज पर पैसा उठाना शुरू किया। लेकिन शायद उसकी किसमत में आम हिन्‍दुस्‍तानी की तरह जीवन नहीं लिखा था। वो जितना आतंकवाद से भाग रहा था, आतंकवाद उतना ही उसका पीछा कर रहा था। इसी दौरान अनंतनाग में उसकी मुलाकात आतंकी तारिक से हुई। तारिक के साथ वो रहने लगा। तब अफजल को नहीं पता था कि वो एक आतंकी है। दोनों का साथ में उठना-बैठना बढ़ गया और देखते ही देखते तारिक ने अफजल को आतंकवाद के लिये प्रेरित करना शुरू कर दिया। वो न चाहते हुए भी कमीश्‍र के लिये जिहाद से जुड़ गया। यहां उसे ढेर सारे रुपए का लालच भी दिया गया। तारिक ने पाकिस्‍तान के गाजियाबाद में रहने वाले कुछ आतंकवादियां से उसका तार्रुफ कराया। इस मुलाकात के बाद वो ‘फिदाईन’ बन गया। फिदाईन यानी किसी भी वारदात में अपनी मौत की चिंता नहीं करने वाला।
पाकिस्‍तानियों के चक्‍कर में बर्बाद हुई जिंदगी
पाकिस्‍तान के आतंकी संगठनों से अफजल की मुलाकातें बढ़ गईं और फिर सभी ने एक मिशन तैयार किया, जिसके अंतर्गत भारत में बड़े संस्‍थानों व दूतावासों पर हमले की प्‍लानिंग की गई। इनका मुख्‍य लक्ष्‍य दिल्‍ली था। इसमें उसके लश्‍कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्‍मद दोनों ने मिलकर प्‍लान बनाया। अफजल गुरु ने पूरी प्‍लानिंग के साथ 13 दिसंबर 2001 के संसद हमले की साजिश रची, जिसे जैश-ए-मोहम्‍मद और लश्‍कर के लड़ाकों ने अंजाम दिया। उस हमले में सात सुरक्षाकर्मी मारे गये। इस हमले के बाद दिल्‍ली पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने इस हमले के साजिशकर्ता की धरपकड़ के लिये सभी घोड़े खोल दिये और 15 दिसंबर को उसे प‍ुलिस ने अफजल को धर दबोचा। उसके खिलाफ कई मामले दर्ज किये गये और सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में फांसी की सजा सुनाई। अफजल के वकील ने राष्‍ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल की, जिस पर बार-बार विचार होता रहा और अब जाकर राष्‍ट्रपति के हस्‍ताक्षर के बाद 9 फरवरी 2013 को अफजल गुरु को फांसी पर लटका दिया गया। उसके शव को भी यहीं तिहाड़ जेल में दफना दिया गया।