लखनऊ : अपने को महान समाजवादी चिन्तक राममनोहर लोहिया का चेला कहलाने वाले सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव उसी दिन लोहिया को भूल गए थे जब एक के बाद एक उन्होंने अपने भाई भतीजों बेटे बहू को एक के बाद एक राजनीती में उतार दिया जबकि लोहिया राजनीति में परिवारवाद के कट्टर विरोधी थे| शायद ही कोई ऐसा बचा हो जो सीधे तौर पर राजनीति में ना हो, जो शीधे तौर पर राजनीति में नहीं हैं उनको पिछले दरवाजे से सत्ता का सुख देने की तैयारी है| जल्द ही यादव खानदान का एक और सदस्य प्रदेश की राजनीति में दस्तक देने वाला है| हम बात कर रहे हैं मुलायम के छोटे भाई, मुख्यमंत्री के चाचा और प्रदेश सरकार के मंत्री शिवपाल सिंह यादव के पुत्र आदित्य यादव की|
जिस दिन से प्रदेश में समाजवादी सरकार बनी है उसी दिन से निगमों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बदले जा रहे हैं इनमें अधिकतर वो नेता हैं जो चुनाव में तो नहीं उतरे लेकिन पार्टी के लिए तन मन और ‘धन’ से सहयोग करते रहे हैं| इसी तरह मुलायम अपने परिवार में युवा होते सदस्यों को भी राजनीति में उतार रहे हैं| इसी क्रम में अगला नाम है शिवपाल सिंह यादव के पुत्र आदित्य यादव का| यूपी कोआपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड (पीसीएफ) के सभापति के निवार्चन की प्रक्रिया आरंभ हो गई है। आगामी 12 फरवरी को सभापति का चुनाव होना है। बुधवार को निदेशक मंडल के सदस्यों के चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल किया गया। अन्य दावेदार न होने से निदेशक मंडल के लिए 11 लोग निर्विरोध चुन लिए गए हैं। इनमें आदित्य यादव भी शामिल हैं, अब यदि आदित्य ने नामांकन किया है तो उनको लाल बत्ती मिलना तय है क्योंकि सभापति को राज्यमंत्री का दर्जा मिलता है।
निर्विरोध चुने गए सदस्य इस प्रकार है शिवपाल सिंह यादव के पुत्र आदित्य, बनवारी यादव के पुत्र आशीष, छोटे सिंह यादव के पुत्र सुधीर, चन्द्रपाल सिंह यादव के पुत्र यशपाल व सपा सांसद धर्मेन्द्र यादव के रिश्तेदार संजय यादव, जगदीश सिंह, विमला यादव, अजय मलिक, जितेन्द्र यादव, गाजीपुर के विजयशंकर राय।
वहीँ लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटे मुलायम ने अक्षय यादव को फिरोजाबाद लोकसभा सीट से टिकट दिया है। अक्षय यादव सपा मुखिया मुलायम सिंह के भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम गोपाल यादव के पुत्र हैं। इस प्रकार उत्तर प्रदेश की राजनीति के सबसे शक्तिशाली यादव परिवार के आदित्य 8वें सदस्य हैं जिन्होंने सक्रिय राजनीति में दस्तक दी है।
मुलायम सिंह यादव वैसे तो पहले से ही परिवारवाद को बढावा देने के लिए बदनाम रहे है , पर जब से इन्होने प्रदेश की राजनीति अपने बेटे अखिलेश यादव को सौपी तब से उनके विरोधी ही क्या उनकी पार्टी के सहयोगी भी दबे जबान मुलायम सिंह यादव पर वंशवाद का आरोप लगाते है | वजह भी साफ़ ही दिखती है, मुलायम सिंह यादव के परिवार में उनको मिलाकर कुल 4 लोग लोकसभा, राज्यसभा की शोभा बड़ा रहे है, जिसमे अभी हाल में ही शामिल हुई उनकी बहू डिम्पल यादव भी है, जो इस राजनीतिक परिवार की सबसे नई सदस्य है | आज से 50 साल पहले जब जवाहर लाल नेहरू ने अपने प्रधानमन्त्री रहते हुए अपनी बेटी को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया था, उस समय थोड़े हो हल्ले के बाद परिवारवाद का रक्तबीज भारतीय राजनीति में बो दिया गया था। पर किसे पता था की नेहरू के डाले गए बीज आगे चल कर हमारी राजनीति और लोकतंत्र कुछ परिवारों की जागीर बन कर रह जायेंगे? अब परिवारवाद के लिए अकेले दोषी कांग्रेस रही नहीं। कांग्रेस और नेहरू खानदान की यह बीमारी लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों में फैल चुकी हैं। कांग्रेस तो नेहरू परिवार की क्षत्रछाया से आज तक बाहर नहीं निकल पाई |
पर लोहिया के समाजवाद का क्या जिसपर खुद उन्ही के चेलो ने दाग लगा दिया जिस समाजवाद का सपना डॉ. लोहिया ने देखा था, वह भी पूरी तरह से बिखर चुका है। दुर्भाग्य यह है कि डॉ.लोहिया ने अपने समाजवाद के सपने को पूरा करने के लिए जिन कंधों और जिस राजनीतिक धारा को खड़ा किया था? आज उन्ही डॉ. लोहिया के शिष्य समाजवाद के नाम पर परिवारवाद बढ़ाने और स्थापित करने में लगे हुए हैं।