देश में एक तरफ जहां मोबाइल फोन के ग्राहकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, वहीं इनके कारण पैदा होने वाली समस्याएं भी रफ्तार पकड़ रही हैं। अक्सर देखने में आ रहा है कि लोग मोबाइल फोन का सलीके से इस्तेमाल नहीं करते और उनकी बातचीत से उनके आस-पास मौजूद लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
जानकारों ने इस समस्या को ‘मोबाइलोफोबिया’ नाम दिया है। समस्या के लगातार बढ़ने के बीच अब सेलफोन के सलीकों के लिए एक अलग संहिता बनाने की जरूरत महसूस की जाने लगी है। लोक व्यवहार विशेषज्ञ [एटीकेट स्पेशलिस्ट] उपासना सिंह कहती हैं कि मीटिंग, अस्पताल, अदालत परिसर, थिएटर, सिनेमाघर, मंदिर, स्कूल आदि में सेलफोन की घंटी व्यवधान उत्पन्न करती है। इसलिए इन स्थानों पर जाने से पहले सेलफोन को साइलेंट या वाइब्रेशन पर रखना चाहिए।
एक अन्य एटीकेट स्पेशलिस्ट गौरव दास कहते हैं कि सेलफोन पर कई लोग जोर-जोर से बातें करते हैं, जिससे निजी या गोपनीय सूचनाएं सार्वजनिक हो सकती है। उनके अनुसार, सेल फोन पर बातें करते समय संयम के साथ ही गुस्से पर भी काबू रखना चाहिए। भावनात्मक बातचीत सोच-समझकर करें, ताकि दूसरों के सामने शर्मिदगी की नौबत न आए। गौरव की राय में, मिस काल करने का चलन गलत है। अपने पैसे बचाने के लिए दूसरों को ‘मिस्ड काल’ देने वाले यह नहीं सोचते कि दूसरों के पास पैसे फालतू नहीं हैं। गौरव कहते हैं कि वाहन चलाते समय सेल फोन का इस्तेमाल कतई नहीं करना चाहिए वर्ना आप अपने साथ-साथ दूसरों की जान भी जोखिम में डाल सकते हैं।
राजधानी में एक स्कूल चला रहे मोहन सिंह कहते हैं कि जरूरी सूचना एसएमएस द्वारा दी जा सकती है। मल्टीमीडिया एप्लीकेशनों जैसे एमएमएस, वीडियो आदि का इस्तेमाल सोच-समझ कर करना चाहिए। इनका गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।