फर्रुखाबाद: कल पूरा देश गणतंत्र दिवस धूमधाम से मनाने की तैयारी कर रहा है। दिल्ली में प्रधानमंत्री प्रातः लाल किले पर तिरंगे झण्डे फहरायेंगे। स्कूली बच्चे अपने अपने स्कूली ड्रेसों में स्कूल जाकर गणतंत्र दिवस के कार्यक्रमों में शामिल होंगे। लेकिन सड़क के किनारे इस दुकान सजाये बैठे मोनू के लिये तो तिरंगा बस शाम की रोटी की जुगाड़ भर है। आज तक स्कूल का मुंह तक न देख पाये मोनू को तो यह भी नहीं मालूम कि गणतंत्र दिवस होता किस चिड़िया का नाम है। सर्वशिक्षा अभियान और विकास के लंबे-चौड़े सरकारी दावों के गाल पर तमाचा है, यह मासूम मोनू। पर किसी को गैरत तो आये………।
स्कूली बच्चों ने अपनी अपनी ड्रेसों को साफ करके रख लिया है। प्रातः बच्चे अपने अपने स्कूलों में पहुंचकर गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। बेसिक शिक्षा इस कार्यक्रम को हर स्कूल में आयोजित करवायेगी। तिरंगे की शान में सेना, पुलिस व अन्य सरकारी विभाग अपने अपने भवनों पर तिरंगे को फहराकर गणतंत्र दिवस की खुशी में मिठाइयां बांटेंगे। वहीं मोनू पिछले कुछ दिन से तिरंगे की दुकान को लगाकर रोजी रोटी कमाने की जुगत में तो लगा है लेकिन हकीकत में उसे यह नहीं पता कि आखिर गणतंत्र दिवस का मतलब क्या है। उसे तो सिर्फ तिरंगा झण्डा बेचकर लोगों से मिले कुछ पैसे से पेट भरने से मतलब है।
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बेसिक शिक्षा सर्वशिक्षा अभियान के तहत मासूमों को शिक्षा देने का चाहे जितना भी दम भर ले लेकिन हकीकत के पायेदान पर अगर खड़े होकर देखें तो अभी भी न जाने कितने मासूम देश आजाद होने के बाद भी कूरे कचरे के ढेर के अलावा मजबूरी में छुटपुट दुकानें लगाकर अपना भविष्य टटोलने में लगे हैं। बेसिक शिक्षा विभाग शासन प्रशासन को फाइलें व्यवस्थित कर भेजता रहता है। देश आजाद होने के बाद हमारी सोच भले ही बदली हो लेकिन अभी जनपद क्या देश के कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां आजादी के बाद भी मासूम न तो आजादी से खेल सकते हैं न ही अपने मन मुताबिक आजादी से घूम सकते हैं। प्रात: होते ही उन्हें काम पर लगा दिया जाता है। सरकार व देश भी इस मामले से अनभिज्ञ नहीं है।
गणतंत्र दिवस पिछली वर्ष भी मनाया गया व आने वाले समय में भी मनाया जाता रहेगा लेकिन इन मासूमों को आजादी व आजाद सोच कब तक मिल पायेगी यह सवाल आज भी कचरे के ढेर में वर्षों से सड़ रहा है।