जब मनुष्य ने बढ़वाई अपनी आयु

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बहुत पुराने समय की बात है। एक दिन भगवान का दरबार लगा था। भगवान सभी प्राणियों की आयु निश्चित करने बैठे थे। इस बीच मनुष्य, गधा, कुत्ता और उल्लू चारों एक साथ भगवान के सामने हाजिर हुए। भगवान ने चारों को चालीस-साल की आयु दे दी।

मनुष्य को भगवान का यह निर्णय पसंद नहीं आया। उसे बुरा लगा। उसने सोचा, “मैं सब प्राणियों में श्रेष्ठ माना जाता हूं, फिर भी मेरी उम्र गधे, कुत्ते और उल्लू जैसे तुच्छ प्राणियों के बराबर ही क्यों? सचमुच भगवान के घर भी अंधेरे-ही-अंधेरे हैं।”

लेकिन उस समय वह कुछ बोला नहीं। कुछ दिनों के बाद मनुष्य भगवान के पास पहुंचा और कहने लगा, “भगवान, मुझे आपके सामने अपनी एक शिकायत रखनी है। उस दिन आपने मेरी, गधे की और उल्लू की आयु एक-सी निश्चित करके मनुष्य-प्राणी के साथ भारी अन्याय किया है। क्या हमारे और इन तुच्छ प्राणियों के बीच कोई अंतर ही नहीं है?” अतएव मेरी आपसे नम्र विनती है कि आप इस विषय में शांतिपूर्वक विचार करें।”

भगवान ने कहा, “अच्छी बात है।” भगवान ने गधे, कुत्ते और उल्लू से पूछ कर उनके जीवन में से बीस-बीस वर्ष कम करके मनुष्य की आयु में साठ वर्ष बढ़ा दिए और उसकी आयु सौ वर्ष की कर दी। लेकिन नतीजा क्या हुआ? मनुष्य अपनी जिंदगी शुरू के चालीस साल आदमी की तरह पूरे जोश और उत्साह के साथ बिताता है। उसके बाद बीस साल गधे की आयु के मिलते हैं।

इस बीस सालों के बीच उसे लड़के-लड़की, बहू, नाती-पोती आदि के रूप में सारी गृहस्थी का भार गधे की तरह ढोना पड़ता है। फिर कुत्ते की आयु में से प्राप्त बीस साल मिलते हैं। इन बीस सालों में घर के दरवाजे के पास ही खटिया रहती है। वह उस पर बैठा-बैठा घरवालों को और बाहर वालों को आते-जाते देखता है और कुत्ते की तरह उन्हें घूरता रहता है। अस्सी साल पूरे होने पर मनुष्य के नसीब में उल्लू की आयु के बीस बरस लिखे रहते हैं। इसलिए वह दिन में उल्लू की तरह खुली आंख लिए अंधा की तरह बैठा रहता है और रात को उल्लू की भांति बिना सोए ही जागता रहता है।

गधे पर उसकी ताकत से ज्यादा बोझ लादकर और उसे डंडे से पीट-पीटकर मनुष्य गधे की अपनी जिंदगी के बैर का बदला लेता है। कुत्ते को दुत्कार-दुत्कार वह कुत्ते की अपनी जिंदगी के बैर का बदला लेता है और उल्लू का तो मुंह देखना भी उसे नहीं सुहाता।