डरपोक बहादुर मंत्री

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लोकतंत्र में विधायिका की कुर्सी पर बैठने के लिए जनता की परिक्रमा करने वाले नेता सत्ता मिल जाने के बाद अपना रंग बदल लेते हैं| मंच माला और माइक के शौक़ीन नेता कुर्सी पर बैठने के बाद जनता के प्रति जबाबदेह हो जाते हैं और उस वक़्त कौन कितना जनता से मिलता है यही पैमाना तय करता है कि अमुक नेता कितना डरपोक या निर्भीक है|
यहाँ कुछ नेताओं के निजी गुण दिए जा रहे है अवलोकन करें कि कौन कितना डरपोक/बहादुर हुआ-
१- मुलायम सिंह यादव:
ग्रामीण परिवेश से निकल कर आये मुलायम सिंह डॉ राम मनोहर लोहिया के पद चिन्हों पर चलने का दावा करते करते समाजवादी हुए और जातीय समीकरण बिठा कर उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री और केंद्र में रक्षा मंत्री तक पहुचे.
मुलायम सिंह यादव आमतौर पर अपने कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद करते हैं, सत्ता में रहते और सत्ता जाने के बाद भी उनका कार्यकर्ताओं और जनता से मिलने जुलने का नजरिया नहीं बदलता| अलबत्ता सत्ता होने पर काम बढ़ जाने पर ये दूरी थोड़ी बढ़ जाती है|
मीडिया से संवाद:
मीडिया कर्मी के सवालों का जबाब देने से बचते हुए मुलायम सिंह बहुत कम देखे गए| टीवी और प्रिंट मीडिया का पत्रकार उन तक पहुच पाए बस| अगर सामना हुआ तो जबाब मिलेगा| हाँ अगर सवाल अगर पसंदीदा न हुआ तो कभी कभी पत्रकारों से खुद भी सवाल करते देखे गए|
सत्ता में रहते जनता दरबार लगते थे| और सत्ता से बाहर हो तब खुद ही अपने वोटर जनता के दरबार में पहुच जाते थे|

२- कद्दावर नेताओं में कलराज मिश्र, राजनाथ सिंह, विनय कटियार, केसरी नाथ त्रिपाठी, माता प्रसाद पाण्डेय, लालजी टंडन, रविन्द्र शुक्ल, शिवपाल सिंह यादव, सलमान खुर्शीद, श्री प्रकाशशुक्ल आदि नेता मीडिया प्रेमी रहे| जनपदीय दौरों पर मीडिया से मिलना और उनके तीखे और मीठे सवालों के बेबाकी से जबाब देना उनकी आदत में रहा| सत्ता में होने पर दौरों के दौरान जनता से सीधे संबाद करने में कभी परेशान नहीं दिखे| हाँ माता प्रसाद पाण्डेय जो की मुलायम सिंह सरकार के दौरान प्रदेश में विधान सभा अध्यक्ष के पद पर रहे पत्रकारों के सवालों में उलझे नहीं उल्टा उलझाते देखे गए|

३- उमा भारती, विनय कटियार, शिवपाल यादव का तो जनपद दौरों में खाना ही तब हजम होता था जब पत्रकारों से बात हो जाती थी| अगर रात्रि विश्राम उसी जनपद में हुआ तो अगले दिन अपनी छपास देख कर ही आगे बढ़ते थे|

राजनाथ सिंह

४- मुख्यमंत्री के तौर पर मुलायम के बाद जनता से संवाद और मीडिया से रुख के साथ मिलने का नो राजनाथ सिंह का आता है| जनपदीय दौरों में ब्लैक कैट कमांडो से घिरे मुख्यमंत्री हेलीकाप्टर से मंच और मंच से हेलीकाप्टर की पद यात्रा के दौरान यदि कोई जोर से चिल्लाया तो उसी तरफ मुड़ने की आदत मुलायम और राजनाथ दोनों की रही|

मायावती

५- ४ बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ चुकी मायावती को जनता और पत्रकार दोनों के सवालों से नफरत है| पक्ष में हो या विपक्ष में बिना उनकी मर्जी के मीडिया और जनता उनसे नहीं मिल सकती| कभी जनपदीय दौरों के दौरान उन्हें जनता और मीडिया से मिलते शायद ही कभी किसी ने देखा हो (देखा हो तो जूर लिखियेगा)| वैसे ये बसपा का कल्चर है काशीराम ने भी एक पत्रकार को सवाल करने पर थप्पड़ जड़ दिया था, सौभाग्य से वो पत्रकार अब देश के शक्तिशाली टी चेनल का पत्रकार बन गया| मगर हर किसी के मुकद्दर में बसपा के बड़े नेताओं का थप्पड़ नहीं है| जनता इन्हें डरपोक सत्ताधारी नेता कहती है मगर इनके मुताबिक ये बसपा के अनुशासन का भाग है| केवल इनकी सुनो, करो चाहे मन हो वो|

मायावती के मंत्री

६- मायावती की तरह ही इनके मंत्रिमंडल में मौजूद सत्ता का मजा लूट रहे मंत्रियो को भी बहनजी की तरह बनना पड़ा| रामवीर उपाध्याय पहले मंत्री बने तो जनता से मिलते थे जनपदीय दौरों में प्रेस का आयोजन होता था, कुर्सी से चिपके रहने के लिए पार्टी बदल ली फिर मंत्री बन गए, अब अपना कैमरामेन साथ लेकर चलते है, मंच से सीधे उतर कार में सरक जाते हैं, जनता के प्रार्थना पत्र अपने निजी सहयोगियो से मंगवाते है, शायद डरते हैं किसी जिला अध्यक्ष या बसपा के केडर के सदस्य ने बहिन जी तक चुगली कर दी तो फिर क्या होगा..

अनंत कुमार मिश्र प्रदेश के कद्दावर नेता मंत्री है, पार्टी बदल बदल के चार बार चुनावी नैया डूबने के बाद पांचवी बार अपने मामा सतीश मिश्र की कृपा से बहिन जी सरकार में स्वस्थ्य मंत्री बनने के बाद चुनावी नैया पार हुई और विधान सभा का चुनाव जीत पाए| शुरू शुरू में तो जनता से मिले, जनता दरबार भी लगाया, मीडिया के सवालों के जबाब भी मुस्करा कर दिए, मगर धीरे धीरे बसपाई होने लगे| अब सिर्फ मंच माला माइक शिलान्यास और उदघाटन तक सीमित हो गए|

वैसे उत्तर प्रदेश के इतिहास में ये पहली बार हो रहा है जब सत्ता जनता के सवालों का जबाब देने की जगह उल्टा जनता से ही सवाल करती रही है| ये उनकी बहादुरी है और मिशाल भी है| लगभग सभी मंत्री पार्टी से सम्बंधित या फिर अपने विभाग के सवालों के जबाब देने से बचते है, देना भी पड़े तो बिना बहिन जी कृपा का शब्द लगाये कुछ नहीं बोलते| वैसे बसपा जनता से सीधे संवाद करने का दावा भी करती है, मीडिया उन्हें दाल भात में मुसरचंद नजर आता है तो गलत भी नहीं है, दलित राजनीती पर मीडिया ने कभी इन्साफ नहीं किया ये बुद्धजीवियो की राय है|

नोट:- यहाँ संपादक ने था का इस्तेमाल किया है, रंग बदलते देर नहीं लगती इसीलिए|

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