विजय दिवस की 41वीं बरसी के अवसर पर प्रभारी स्टेशन कमांडर कर्नल एमआरके राजेश पानीकर ने अमरजवान ज्योति पर पुष्प चक्र अर्पित कर शहीदों को श्रृद्धांजलि दी। 16 दिसंबर, 1971 को भारत ने पाकिस्तान को हराकर इतिहास रचा था। इस जंग के कई नायकों में से एक, जेएफआर जैकब उस लम्हे के भी गवाह बने थे जब जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने पाकिस्तान सेना के प्रमुख जनरल नियाजी और उनके हजारों फौजियों ने आत्मसमर्पण किया था। पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने इस युद्ध के बाद घुटने टेके थे। सीधी जंग में भारतीय जवानों ने बड़ी चतुराई और बहादुरी से दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए थे।
रविवार को करियप्पा कांप्लेक्स में आयोजित विजय दिवस समारोह के दौरान स्टेशन कमांडर ने शहीदों को श्रृद्धांजलि अर्पित कर देश की सुरक्षा में कुर्बान हो गये भारतीय सेना के वीर जवानों को याद किया। राजपूत रेजीमेंट के अतिरिक्त सिखलाईट, सैन्य अस्पताल व अन्य यूनिटों के सैन्य अधिकारियों ने भी श्रृद्धांजलि भेंट की। इस अवसर पर पू्र्व सैनिकों को भी आमंत्रित किया गया था।
इस अवसर पर कर्नलआरके जसवाल, ले. कर्नल संग्राम सिंह बरतक, केएस डूडी, मेजर दर्शन सचदेवा, मेजर आरएन पाडी, ले. कर्नल मनीश जैन, कर्नल विजय कुमार, ले. कर्नल पीसी पाण्डेय, मेजर मगेश, ले. कर्नल बलराज, मेजर आरके सिंह, कै. प्रसून सिंह, ले. राकेश कुमार व ले. नरेंद्र सिंह तंवर मौजूद रहे। पूर्व सैनिकों में उदय राज सिंह, केबी सिंह, सरनाम सिंह, ब्रिजपाल सिंह, सतीश पाण्डेय, आईपीएस राठौर, रामपाल सिंह, हरवीर सिंह आदि लगभग दौ सौ गौरव सैनिकों ने भाग लिया।
विजय दिवस की याद
1971 की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना भारतीय फौजों के सामने सिर्फ 13 दिन ही टिक सकी। इतिहास की सबसे कम दिनों तक चलने वाली लड़ाइयों में से एक इस लड़ाई के बाद पाकिस्तान के करीब 93 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। आधुनिक सैन्य काल में इस पैमाने पर किसी फौज के आत्मसमर्पण का यह पहला मामला था।
सेना प्रमुख सैम हॉरमुसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ ने 1969 में जेएफआर जैकब को पूर्वी कमान प्रमुख बना दिया था। जैकब ने 1971 की लड़ाई में अहम भूमिका निभाते हुए दुश्मनों को रणनीतिक मात दी थी।।
पाकिस्तानी फौज को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करने वाले जनरल (रिटायर्ड) जैकब फर्ज रफेल (जेएफआर) जैकब के मुताबिक भारत के तीखे हमलों से परेशान होकर पाकिस्तान सेना ने संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में युद्ध विराम की पेशकश की, जिसे भारतीय सेना ने अपनी चतुराई और पराक्रम से पाकिस्तान के पूर्वी कमान के 93,000 सैनिकों के सरेंडर में बदल दिया।
नियाजी के पास ढाका में ही करीब 30 हजार सैनिक थे, जबकि हमारे पास 3 हजार। जैकब के मुताबिक उसके पास कई हफ्तों तक लड़ाई लड़ने की क्षमता थी। जैकब के मुताबिक अगर नियाजी ने समर्पण करने की बजाय युद्ध लड़ता तो पोलिश रिजॉल्यूशन जिस पर संयुक्त राष्ट्र में बहस हो रही थी, वह लागू हो जाता और बांग्लादेश की आज़ादी का सपना अधूरा रह जाता। लेकिन वह समर्पण के लिए तैयार हो गया।
इससे पहले कि दो परमाणु ताकत संपन्न राष्ट्र किसी जंग में उलझते पाकिस्तान की पूर्वी विंग ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके साथ ही युद्ध खत्म हो गया और बांग्लादेश का उदय हुआ।
मैं तुम्हें 30 मिनट देता हूं
16 दिसंबर को जैकब बिल्कुल निहत्थे हाथों में सिर्फ सरेंडर के काग़ज़ लेकर नियाजी के हेडक्वॉर्टर पहुंच गए। सरेंडर के काग़ज़ जैकब ने खुद ड्राफ्ट किए थे, लेकिन इस पर आलाकमान से मंजूरी नहीं मिली थी। इस बीच राजधानी में मुक्ति वाहिनी और पाकिस्तानी सेना के बीच युद्ध जारी था।
भारत की ओर से पूर्वी कमान का नेतृत्व कर रहे जेएफआर जैकब ने नियाजी से कहा, मैं आपको यकीन दिलाता हुं कि आप अगर जनता के बीच आत्मसमर्पण करना चाहते हैं तो हम आपकी और आपके आदमियों की सुरक्षा की गारंटी लेते हैं। भारत सरकार ने इस बारे में वादा किया है और हम आपकी और आपके लोगों की सुरक्षा का भरोसा दिलाते हैं। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो हम आपकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं ले सकते हैं।
जनरल जैकब ने लिखा है कि , नियाजी लगातार बात करता रहा और आखिर में मैंने कहा, ‘नियाजी मैं तुम्हें इससे बेहतर डील नहीं दे सकता हूं। मैं तुम्हें 30 मिनट देता हूं। अगर तुम कोई फैसला नहीं कर पाए तो मैं हमले का आदेश दे दूंगा।‘ बाद में नियाजी के दफ्तर से जैकब लौट आए। नियाजी के पास दोबारा पहुंचे जैकब के शब्दों में, ‘मैं नियाजी के पास टहलते हुए पहुंचा। मेज पर सरेंडर के काग़जात रखे हुए थे। मैंने पूछा, ‘जनरल क्या आप इसे मंजूर करते हैं?’ मैंने नियाजी से तीन बार पूछा। लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया। इसके बाद पाकिस्तान सेना ने सरेंडर कर दिया।