विधायक जी नहीं दे पायेंगे अपनी निधि से परिवारिक संस्‍था को धन, परिवार में ससुराल भी शामिल

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उत्‍तर प्रदेश में विधायक निधि के दुरुपयोग की बढ़ती शिकायतों के मद्देनजर प्रदेश सरकार ने  फैसला किया है कि विधायकगण ऐसी किसी संस्था को निधि से पैसा नहीं दे सकेंगे, जिनमें उनके परिवार के सदस्य शामिल होंगे। साथ ही विधायकों के लिए परिवार की नई परिभाषा तय की गई है, जिसमें ससुराल को भी शामिल माना गया है। आम तौर पर परिवार का मतलब होता है:- माता- पिता, पति-पत्‍‌नी, पुत्र-पुत्री, भाई-बहन, चाचा-ताऊ, भतीजे-भतीजी, लेकिन उप्र के विधायकों के संदर्भ में अब उनकी ससुराल के लोग भी उनके परिवार का हिस्सा माने जाएंगे। यानी सास-ससुर, साले-सरहज, साली-साढू और इनके पुत्र-पुत्री यह सब अब विधायक जी के परिवार में शुमार होंगे। इसके साथ ही एक और प्रतिबंध यह भी लगाया गया है कि किसी एक संस्‍था को कोई विधायक केवल पूरे कार्यकाल में अधिकतम 25 लाख की ही धनराशि दे सकता है।

पाया गया कि विधायकों की निधि में उनके ससुराल पक्ष के सदस्यों की दखलअंदाजी ज्यादा होती है, ऐसे में जरूरी हो गया कि परिवार की परिभाषा में ससुराल पक्ष के सदस्यों को जरूर शामिल किया जाए। सांसद निधि की गाइड लाइन में भी परिवार की परिभाषा के तहत सांसदों के ससुराल पक्ष के लोगों को शामिल माना गया है, इसी के दृष्टिगत विधायक निधि में भी यह नियम अपनाने का फैसला किया गया है। अब विधायक के माता-पिता, भाई-बहन, बच्चे, पोते-पोतियां और ससुराल के सभी लोग परिवार के सदस्य माने जाएंगे।

अब  सरकार ने फैसला किया कि विधायकगण ऐसी किसी संस्था को निधि से पैसा नहीं दे सकेंगे, जिनमें उनके परिवार के सदस्य शामिल होंगे। सामान्य तौर पर परिवार की परिभाषा के तहत माता-पिता, पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री, भाई-बहन माना जाता है। संयुक्त परिवार होने की स्थिति में चाचा-ताऊ, भतीजे-भतीजी भी परिवार का हिस्सा माने जाते हैं, लेकिन इससे विधायक निधि के दुरुपयोग की संभावना खत्म नहीं हो रही थी।

विदित है कि अमूमन विधायकगण ऐसी संस्थाओं को अपनी विधायक निधि से धन आवंटित करने की संस्तुति कर देते हैं, जो उनके परिवारीजन की होती हैं। कई बार यह भी देखने में आता है कि कोई विधायक सीधे अपने परिवार से जुड़ी संस्था को धन देने के बजाय अपने किसी साथी विधायक के परिवार से जुड़ी संस्था को धन आवंटित करने की सिफारिश कर देता है और उसके बदले वह विधायक उनकी संस्था को अपनी निधि से धन दे दिया करता है। इस व्‍यवस्‍था को रोकने की अभी कोई प्रक्रिया नहीं बन पायी है। विधायक निधि में भी सासंद निधि की तरह ही यदि पैसा सीधे संस्‍था को दिये जाने पर रोक लग जाये तो कफी बडा दुरुपयोग रुक सकता है। अभी तो अनेक विद्यालयों के एक की कक्ष को अलग वर्षों में अलग विधयकों की निधि से बनवाने की भी नजीरें मोजूद हैं।