फर्रुखाबाद: गंगा प्रदूषण के लिए जहां एक ओर इसमें मिलने वाले शहरी नालों का योगदान है वहीं गंगा तटों पर आने वाले लाखों श्रद्धालुओं द्वारा फेके गये प्लास्टिक के कचरे के साथ ही गंगा में किये जा रहे शवों के जलप्रवाह व शवदाह के उपरांत बची अस्थियों एवं कचड़े का प्रवाह करने से सर्वाधिक गंगा प्रदूषण किया जा रहा है। जिसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि गंगा श्रद्धालुओं को ही खुद सुधरना होगा तभी श्रद्धा की आराध्य गंगा को स्वच्छ बनाया जा सकता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा गंगा में नालों का पानी व पालीथिन व प्लास्टिक की अन्य सामग्री प्रवाहित न करने के भले ही निर्देश दिये हों लेकिन इस पर गंगा श्रद्धालुओं से लेकर अन्य जिम्मेदार अधिकारी भी अमल में लाने से शायद पहले से ही कतराते रहे हैं। फर्रुखाबाद जनपद के अधिकांश सीवरेज नालों को बिना ट्रीटमेंट किये ही गंगा में प्रवाहित किया जा रहा है। जिसके लिए प्रशासन द्वारा मात्र फतेहगढ़ के एक नाले में ही ट्रीटमेंट प्लांट लगवाया गया लेकिन फर्रुखाबाद शहर का सर्वाधिक गंदा पानी व केमिकल युक्त पानी पवित्र नदी गंगा में प्रवाहित किया जा रहा है। अंगूरी बाग स्थित छपाई कारखानों से निकलने वाले केमिकल युक्त पानी गंगा में सीधे बहाये जाने से कई बार गंगा में मछलियों इत्यादि के मरने तक की सूचनायें आतीं रहीं हैं लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों ने आज तक कोई कारगर कदम नहीं उठाया।
जहां एक तरफ सामाजिक संगठन गंगा स्वच्छता अभियान का ढिंढोरा पीटते नजर आते हैं लेकिन वही श्रद्धालु प्लास्टिक की थैलियों में प्रसाद से लेकर खाने की वस्तुएं तक लेकर गंगा तटों पर गंदगी फैलाते नजर आते हैं। इतना ही नहीं गंगा के किनारे बनवाये गये शुलभ शौचालयों तक के मुहानों को सीधे गंगा में प्रवाहित किया जा रहा है। जिसके लिए आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गयी। यही गंगा भक्त एक तरफ गंगा की सफाई की बात करते हैं तो दूसरी तरफ शवों को सीधे गंगा में प्रवाहित करने के अलावा शवों को दफनाने के बाद बची हुई राख को गंगा में सीधे प्रवाहित करते बखूबी देखा जा सकता है।
वहीं प्रशासनिक अधिकारियों ने कभी विद्युत शव दाह गृह बनवाने की योजना नहीं भेजी तो नहीं भेजी वहीं पुलिस विभाग द्वारा लावारिश शवों को सीधे गंगा में फिकवा दिया जाता है। जोकि गंगा के जल को प्रदूषित ही नहीं संक्रमित भी करते हैं। लावारिश शवों तक को दफनाने की प्रशासन के पास कोई व्यवस्था नहीं है। यह बात अलग है कि पुलिस द्वारा कागजों पर इन शवों को लकड़ियों से दफनाया जाता हो लेकिन हकीकत में सौ प्रतिशत लावारिश शवों को गंगा में सीधे ही टांग पकड़कर फेंक दिया जाता है। यह गंगा प्रदूषण के साथ ही शवों के साथ भी पुलिस की ज्यादती नजर आती है।
हकीकत में देखा जाये तो गंगा प्रदूषण के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी व गंगा श्रद्धालु ही हैं। जब तक गंगा श्रद्धालुओं में जागरूकता की भावना नहीं होगी, गंगा भक्तों की जुबान से उतर कर श्रद्धा उनके दिलों तक नहीं जायेगी तब तक गंगा मैया को प्रदूषण से मुक्ति नहीं मिलेगी। तब तक इन्हीं भक्तों द्वारा गंगा में प्लास्टिक मोमिया, मूर्तियां, कचड़ा, शवों से बचीं हुईं लकड़ियां, प्रसाद के प्लास्टिक के पैकिट इत्यादि डालकर प्रदूषित की जाती रहेगी।