प्रेस पर नियंत्रण के मुद्दे पर इंदिरा के आगे भी नहीं झुके थे गुजराल

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पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल कांग्रेस से वे लंबे समय तक जुड़े रहे और इंदिरा गांधी सरकार में वे विभिन्न पदों पर रहे। राजनीतिक जीवन में मूल्यों व अपने दायित्वों के प्रति समर्पित रहे। सन 1975 में प्रेस पर नियंत्रण को लेरक उठाए गए कदमों परउन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की भी बात नहीं मानी थी।

25 जून 1975 को जब इमरजेंसी लगी तब प्रेस पर नियंत्रण के उनके कदम काफी विवादास्पद रहे थे। गुजराल सूचना व प्रसारण मंत्री थे। उन्होंने इस बारे में किसी की नहीं सुनी तो इंदिरा ने उन्हें राजदूत बनाकर मास्को भेज दिया। वे इस पद पर लंबे समय तक रहे। 1980 के मध्य में भारत लौटने पर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। तब जनता दल में शामिल होकर उन्होंने राजनीति की नई पारी की शुरूआत की। जनता दल सरकार के प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा के इस्तीफा देने के बाद गुजराल देश के 12वें प्रधानमंत्री बने। प्रशासनिक कार्यो व शासन का अनुभव होने के कारण वे प्रधानमंत्री के रूप में एक अलग पहचान छोड़ने में सफल रहे।

गुजराल ने 1996 में बतौर केंद्रीय विदेश मंत्री दूसरे कार्यकाल के दौरान “गुजराल सिद्धांत” का प्रतिपादन किया था। बाद में बतौर प्रधानमंत्री गुजराल ने इसी सिद्धांत को आगे बढ़ाया। इस सिद्धांत के तहत उन्होंने सभी पड़ोसी देशों से मैत्री और सौहार्द बनाए रखने को जरूरी बताया था। भले ही पड़ोसी देश, भारत के प्रयासों का अनुकरण न करें। मुम्बई पर 2008 में हुए हमले के बाद गुजराल के इस सिद्धांत की खासी आलोचना हुई। 1989 में विदेश मंत्री रहते हुए ही उन्होंने कुवैत पर इराक हमले और उसके बाद छिड़े प्रथम खाड़ी युद्ध का मामला सम्भाला था। भारतीय प्रतिनिधि के तौर पर वे इराक गए और सद्दाम हुसैन से मिले। तब उनका सद्दाम को गले लगाना विवादों का कारण बन गया था। प्रधानमंत्री के तौर पर भी वे कई विवादों में रहे। उत्तरप्रदेश में 1997 में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को लेकर काफी विवादा हुआ था। तब राष्ट्रपति के आर नारायणन ने राष्ट्रपति शासन की उनकी अनुशंसा पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था। प्रधानमंत्री के तौर पर सीबीआई निदेशक जोगिंदर सिंह का तबादला करने पर भी वे विवादों में आए। जोगिंदर सिंह तब बिहार के चारा घोटाले की जांच कर रहे थे जिसमें गुजराल सरकार में मंत्री लालू प्रसाद यादव प्रमुख आरोपी थे। आरोप लगे कि यादव को बचाने के लिए गुजराल ने जोगिंदर सिंह का तबादला किया है। राजीव गांधी हत्याकांड की जांच कर रही जैन कमीशन की अंतरिम रिपोर्ट लीक होने के मामले में भी गुजराल सरकार विवादों में रही। कांग्रेस इस बात पर अड़ गई थी कि रिपोर्ट को संसद में पेश किया जाए। संसद में रिपोर्ट पेश होने के बाद कांग्रेस से यूनाइटेड फ्रंट की दूरी बढ़ती गई और अंतत: सरकार गिर गई।

उल्लेखनीय है कि गुजराल (92)का शुक्रवार को करीब साढ़े तीन बजे गुड़गांव के एक अस्पताल में निधन हो गया। वे लम्बे समय से बीमार थे। उनका शनिवार को दिल्ली में अंतिम संस्कार होगा। 19 नवम्बर से गुडगांव के एक निजी अस्पताल में उनका उपचार चल रहा था। फेंफड़ों में संक्रमण के कारण उनकी हालत बिगड़ती गई। अस्पताल में ही उन्होंने अंतिम सांस ली।