बदलाव- फर्रुखाबादी नेताओ को तलाश है उन्हें अहमियत देने वाले दल की

Uncategorized

फर्रुखाबाद: लगता है कि अरविन्द केजरीवाल ने भूरे भारत की राजनीति गड़बड़ा दी है| भाजपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य रहे राजनाथ सिंह ‘सूर्य’ भ्रष्टाचार का सवाल पूछने पर खुद को भाजपा का नहीं कहते| कई कांग्रेसी अपने साथियो पर लगे आरोपों का विरोध करने की बात आते ही बीमार पड़ जाते है| राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के मुखिया कल्याण सिंह के भाजपा में जाने की बात सुर्ख़ियों में आने के बाद उनके साथ के कई नेता भाजपा में साथ जाने की जगह फ्रीलांसर बनना चाहते है| लगता है कुछ बदलाव आ रहा है| राजनीति करने वाली युवा पीड़ी अपनी वैल्यू के आधार पर राजनैतिक दलों को बोली बुलवाने की हैसियत में आ चुका है|

कल्याण सिंह के लोधी वोट बैंक के सहारे चुनाव लड़ चुके डॉ जितेन्द्र यादव और मोहन अग्रवाल कल्याण के साथ भाजपा में जाने की जगह अब कुछ समय फ्रीलांसर बने रहना चाहते है| दोनों कहते है वे वेट एंड वाच की स्थिति में है| मकसद साफ़ है सभी राजनैतिक दलों का पैमाना नीचे आ चुका है| सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले अरविन्द केजरीवाल की टीआरपी का बुलबुला इनदिनों हाई है| अब किस दल का पैमाना आने वाले चुनाव में चढ़ेगा, इसका इन्तजार नए युग के नेताओ को बहुत खूब है|

मोहन अग्रवाल पेशे से व्यवसायी है| उन्हें सरकार के साथ बने रहने या न रहने से कोई नफा नुकसान की चिंता नहीं है| नरेश अग्रवाल के करीबी है| नरेश अग्रवाल सपा में है| एक चुनाव लड़ चुके मोहन अब न० दो या तीन की हैसियत से किसी दल में नहीं जुड़ना चाहते| भाजपा में उन्हें नजदीकी टिकेट का जुगाड़ नहीं दिखता| नरेश अग्रवाल के साथ सपा में जाने पर भी वही स्थिति दिखाई पड़ती है| लिहाजा नया फंडा अख्तियार करने की बात करते है| मोहन कहते है की वे किसी दल के साथ नहीं व्यक्ति के साथ रहेंगे| कल्याण सिंह, उनका बेटा या मुकेश राजपूत को यदि भाजपा से संसद का टिकेट मिलता है तो वे इन तीनो को चुनाव लड़ायेंगे| मगर भाजपा में नहीं जायेंगे| जाहिर है मोहन अग्रवाल पिछले चुनाव में मिले लोधी वोटो को अपने साथ रखना चाहते है|

डॉ जितेन्द्र यादव पेशे से शिक्षा व्यवसायी है| मेडिकल कॉलेज चलाते है| राजनीति में चस्का अपने साले बिहार के बाहुबली राजनैतिज्ञ “पप्पू यादव” से रिश्तेदारी के बाद लगा| शिक्षा के कार्य में लगा पूरा परिवार वैसे तो वर्षो से राजनैतिज्ञ सम्बन्ध रखता रहा है| ये सम्बन्ध सरकार में दल के बने पर ज्यादा प्रगाढ़ होते है| अमृतपुर विधानसभा चुनाव में दो न० की हैसियत और राष्ट्रीय पार्टी की टिकेट पर चुनाव लड़ सम्मानजनक वोट पाने वाले डॉ जितेन्द्र यादव को कल्याण सिंह और उनके वोट बैंक से कोई खास मोह नहीं बना| पहले ही चुनाव में परिपक्व चुनाव लड़ चुके डॉ जितेन्द्र यादव मूलतः शिक्षा व्यवसायी पहले और नेता बाद में है| कमोवेश यही कारण है कि वे मुलायम सिंह के साथ हवाई जहाज में गुफ्तगू करते है, लखनऊ में कलराज मिश्र से मुलाकात करते है और बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक के बड़े राजनैतिज्ञ सबंधो को एक सूत्र में बांधे रखना चाहते है| वे दलगत राजनीति से ज्यादा व्यक्तिगत सबंधो को ज्यादा तरजीह देना चाहते है| फर्रुखाबाद के डॉ जितेन्द्र यादव को भी न० दो की हैसियत बर्दास्त नहीं है| वे भी वेट एंड वाच की स्थिति की बात करते है| इशारा साइकिल पर सवारी करने का है मगर सही वक़्त और सही पॅकेज की शर्त के साथ| यानि अब युवा पीड़ी का नेता अपनी कीमत आंकने लगा है| फैमली पार्टी चलाने वालों के लिए ये अशुभ संकेत और जवान होते लोकतंत्र का शुभ संकेत है|