फर्रुखाबद- शनिवार को विदेश से लौटने के बाद मीडिया से रुबरु हुए केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद लगभग दो घंटे चली प्रेस कांफ्रेंस के दौरान एक कुशल वकील की तरह मीडिया में उनके जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट के विरुद्ध मीडिया में आयी खबरों के तकनीकी पहलुओं पर ही बहस करते व किसी साधारण सी एनजीओ के अध्यक्ष की तरह अखबार की कटिंग व फोटो दिखाते दिखे। परंतु भारत जैसे विशाल देश के केंद्री कानून मंत्री की शुचिता या नैतिकता नदारद थी।
कई दिनों के विदेश दौरे के बाद भारत लौटे सलमान खुर्शीद ने रिवार को दिल्ली में मीडिया से रुबरू हुए। अपराह्न तीन से पांच बजे तक चली इस प्रेस कांफ्रेंस के दौरान मीडिया कर्मियों व केंद्रीय मंत्री के बीच कई बार स्थित ‘हाट-टाक’ की भी बनी। इस दौरान अपने ‘कूल’ व्यवहार व एक पक्षीय ‘मोनोलाग’ के अभ्यस्थ सलमान खुर्शीद कई बार आपा खोते दिखे। उनकी पत्नी लुइस खुर्शीद ने उनको कई बार झंकझोर कर संयत किया। पूरे समय वह केवल समाचरों के तकनीकी पहलुओं का पोस्टमार्टम करते रहे।उन्होंने पूरा जोर इस बात पर लगाया कि कुछ समाचारों में कहा गया कि विकलांग कैंपों का आयेजन ही नहीं किया गया, जबकि कैंपों का वास्तव में आयोजन हुआ, कुछ में वह स्वयं व्यक्तिगत रूप से सम्मिलित हुए व कुछ में दूसरे जिम्मेदार लोग मौजूद रहे। किसी सामान्य सी एनजीओ के साधारण से अध्यक्ष की तरह अखबारों की कटिंग व फोटो दिखाते नजर आये। उन्होंने समाचार का प्रकार ‘स्टिंग’ न होकर ‘सोर्स’ होने पर जोर दिया। परंतु जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट की ओर से दी गयी टेस्ट चेक रिपोर्ट पर उत्तर प्रेदश सरकार की ओर से कराये गये सत्यापन में अधिकारियों के हस्थाक्षर फर्जी होने के बिंदु पर उन्होंने इसे प्रदेश सरकार के जांच का विषय बताकर बचने का भरसक प्रयास किय।
इस पूरे प्रकरण में दो घंटे तक चली प्रेस कांफ्रेंस के दौरान एक कुशल वकील और किसी एनजीओ का अध्यक्ष तो नजर आया परंतु भारत जैसे विशाल देश के केंद्रीय कानून मंत्री की सदाशयता, शुचिता व नैतिकता कहीं नजर नहीं आयी। प्रदेश सरकार की इतनी महत्वपूर्ण रिपोर्ट में इतनी गलती कैसे हो सकती है। राजनीति मे सबकुछ संभव है। हो सकता है कि दोबारा हो रही जांच में प्रदेश सरकार अपनी पुरानी रिपोर्ट को ही फर्जी साबित कर दे। परंतु बात नैतिकता की भी है। परंतु अफसोस नैतिकता को कानून की किताबों या नियमों में नहीं बांधा जा सकता। परंतु भारत जैसे नैतिकतावादी देश में यह पहला उदाहरण भी नहीं है, मोदी, राजा, बंगारू, वीरभद्र, येदुरप्पा सहित न जाने कितनी लंबी सूची है।