फर्रुखाबाद: राजनैतिक हलकों में इस समय एक सवाल तेजी से उठ रहा है कि केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के तत्कालीन तथाकथित राजनैतिक सलाहकार प्रत्यूश शुक्ला को आखिर अपनी हत्या का खतरा क्यों है व किससे है? यह सवाल बेवजह नहीं उठा है। यह सवाल मात्र 40 वर्षीय एक स्वस्थ व्यक्ति द्वारा अपनी पूरे भारत में फैली अचल संपत्तियों का वारिस अपने पुत्र को बनाये जाने संबंधी वसीयत पंजीकृत कराये जाने के बाद उठा है। बात इतनी ही नहीं है। वसीयत की सूचना लीक होने के बाद एक कद्दावर कांग्रेस नेता द्वारा प्रत्यूश शुक्ला की संपत्तियों की जनाकारी के लिये आरटीआई के अंतर्गत आवेदन कर दिया गया है।
पुराने लोगों को अभी भी याद है कि प्रत्यूश् शुक्ला के पिता जी जामा मस्जिद के सामने गिरीश दुबे के बाड़े में एक मामूली सी दुकान रखते थे। शहर की एक बंद हो चुकी इनवेस्टमेंट कंपनी में मुलाजिम से केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के कथित तौर पर राजनैतिक सलाहकार तक पहुंचने के पीछे निश्चय प्रत्यूश शुक्ला की अपनी मेहनत, लगन व खुर्शीद परिवार के प्रति समर्पण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उतनी ही महत्वपूर्ण, उनकी खुर्शीद परिवार से अचानक हुई अलहदगी भी है। कई दशकों का साथ अचानक किन परिस्थितियों में टूटा, इसका जवाब तो दो पक्षों में से कोई एक ही दे सकता है। परंतु इतना तो माना ही जायेगा कि कारण कोई बड़ा अवश्य रहा होगा।
अभी प्रत्यूश की खुर्शीद परिवार से दूरी की खबरों की पुष्टि भी नहीं हो पायी थी, कि अचानक एक वसीयत की चर्चा सामने आ गयी। हमने प्रशासनिक सूत्रों को टटोला तो पता चला कि वसीयत तो विगत 29 अगस्त 2012 को ही की जा चुकी थी। प्रत्यूश् शुक्ला पुत्र कैलाश शुक्ला की ओर से की गयी वसीयत में प्रत्यूश शुक्ला ने, अपनी असमय मृत्यु की स्थिति में, संपूर्ण भारत में फैली अपनी समस्त चल-अचल संपत्तियों का एक मात्र वारिस अपने पुत्र प्रयांश शुक्ला को घोषित किया है। नाबालिग प्रयांश शुक्ला के बालिग होने तक उन्होंने अपनी पत्नी अर्चना शुक्ला को केयर टेकर की हैसियत से नियुक्त किया है।
अब पहला सवाल यह उठता है कि आखिर प्रत्यूश शुक्ला जैसे किसी स्वस्थ युवक को अचानक अपनी वसीयत लिखवाने की जरूरत क्यों महसूस हुई। जाहिर है कि उनको अपनी असमय मृत्यु या हत्या की आश्ंका सता रही है। यहीं पर यह सवाल भी उठता है कि खुर्शीद परिवार से दूरी बनाते ही उनको यह आश्ंका किन परिस्थितियों में पैदा हुई।
इसी के साथ एक दूसरा सवाल यह भी पैदा हुआ कि आखिर किसी पिता को अपनी संपत्ति अपने पुत्र को हस्तांतरित करने के लिये किसी वसीयत की जरूरत आखिर किन परिस्थितियों में पड़ सकती है। हमने कानून के जानकारों से संपर्क किया तो पता चला कि इस वसीयत की अनुपस्थिति में संपूर्ण संपत्ति में पत्नी को भी आधी संपत्ति का मालिक माना जाता। परंतु आम तौर पर एक मां अपने बेटे से बचा कर संपत्ति आखिर कहां ले जाती। जाहिर है वह भी बेटे को ही मिलती। परंतु इस वसीयत ने कई सवाल और खड़े कर दिये हैं।
एक सवाल और भी है कि आखिर प्रत्यूश शुक्ला की संपत्तियां देश में और कहां कहां हैं? यह संपत्तियां उन्होंने अपनी आय के किस श्रोत से कब कब, और कैसे कैसे खरीदीं? यह संपत्तियां स्वयं उनकी हैं या किसी की बेनामी संपत्तियां हैं?
सवाल उठे हैं तो देर सवेर उनके जवाब भी आयेंगे। परंतु मुश्किल यह है कि इस संवेदनशील मुददे पर स्वयं प्रत्यूश शुक्ला, खुर्शीद परिवार या कांग्रेस की ओर से कोई बोलने को तैयार नहीं है।