सुरक्षित मातृत्व के लिए महिलाओं के स्वास्थ्य की जाँच

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फर्रुखाबाद:(कायमगंज)  जनपद के स्वास्थ्य केन्द्रों के साथ ही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कायमगंज में भी गुरुवार को प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान मनाया गया, साथ ही गर्भवती महिलाओं को स्वल्पाहार भी प्रदान किया गया |
प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान भारत सरकार की एक पहल है, इसमें हर महीने की 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं की पूर्ण जाँच की जाती है। जिसके द्वारा ये पता लगाया जाता है कि कहीं कोई गर्भवती महिला उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था में तो नहीं।
इस अभियान के अंतर्गत यदि गर्भवती महिलाओं को उनकी प्रसव पूर्व की अवधि के दौरान गुणवत्तायुक्त देखभाल प्रदान की जाए तथा उच्च जोख़िम वाले कारक जैसे कि गंभीर एनिमिया, गर्भवस्था प्रेरित उच्च रक्त चाप इत्यादि का समय पर पता लगाकर अच्छी तरह से इलाज किया जाए, तो मातृ मृत्यु में कमी लायी जा सकती है।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कायमगंज के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ अनुराग वर्मा ने बताया की यहाँ 88 गर्भवती महिलाओं का परीक्षण किया गया, जिसमें से 21 गर्भवती महिलायेँ उच्च जोखिम की अवस्था में मिली ।
साथ ही यह भी बताया कि ये जो महिलाएं एचआरपी (हाई रिस्क प्रेग्नेंसी) चिन्हित हुई है, प्रसव होने तक उनको विशेष निरीक्षण में रखा जाएगा, तथा वह संस्थागत प्रसव ही कराये, इसके लिए उनके परिवार को समझाया जाएगा।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कायमगंज की स्त्री रोग विशेषज्ञ डा.मधु अग्रवाल ने बताया कि अगर किसी महिला को पहले से हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत है तो ऐसे में उसे अपनी गर्भावस्था के दौरान सचेत रहने की जरूरत है। वहीं कई बार गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को हाइपर टेंशन की वजह से झटके आने लगते हैं। इसे प्री एक्लेम्शिया कहते हैं। ऐसे में जच्चा-बच्चा दोनों की मौत हो सकती है। वहीं कई बार डिलीवरी के बाद भी महिलाओं को झटके आने लगते हैं। एक्लेम्शिया का पूरी तरह से इलाज किया जाना चाहिए| साथ ही यह भी बताया की ज्यादातर देखने में आता है कि संक्रमण, एक्लेम्शिया के अलावा एनिमिया भी प्रीमेच्योर डिलीवरी का कारण है। इसलिए महिलाओं का हीमोग्लोबिन 11 से 14 एमजी के बीच होना चाहिए। एनिमिया की वजह से उन्हें संक्रमण की संभावना ज्यादा रहती है। जिसकी वजह से समय से पहले डिलीवरी हो जाती है। इसलिए महिलाओं को संतुलित आहार लेना चाहिए।
साथ ही यह भी बताया कि गर्भ में जुड़वा या इससे अधिक शिशु पलना, गर्भावस्था के दौरान अत्याधिक रक्तस्त्राव, गर्भाशय की विकृति या असामान्यता, ग्रीवा की कमजोरी, गर्भपात करवाना, पिछली गर्भावस्थाओं में गर्भपात हो जाना, पानी की थैली जल्दी फट जाना, धूम्रपान व मादक पदार्थों ड्रग्स का सेवन, प्रेग्नेंसी इंड्यूस्ड डायबिटीज, ज्यादा वजन होना इत्यादि भी हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के लक्षण हैं |
साथ ही यह भी बताया की इसके लिए मां का जागरुक होना जरूरी है। इसके लिए मां को अपना एएनसी चेकअप, अल्ट्रासाउंड आदि समय पर करवाना चाहिए। इससे हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की पहचान हो जाती है। ऐसे में किसी भी तरह का रिस्क होने पर इसका इलाज किया जा सकता है। हाई रिस्क प्रेग्नेंसी में सबसे ज्यादा प्रीमेच्योर डिलीवरी होने की आशंका रहती है।
उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था है क्या?- उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था वह अवस्था है जिसमे माँ या उसके भ्रूण के स्वास्थ्य या जीवन को खतरा होता है। किसी भी गर्भावस्था में जहाँ जटिलताओं की संभावना अधिक होती है उस गर्भावस्था को हाई रिस्क प्रेगनेंसी या उच्च जोखिम वाली गर्भवस्था में रखा जाता है। इस तरह की गर्भावस्था को प्रशिक्षित डॉक्टर्स की विशिष्ट देखभाल की आवश्यकता होती है।
इस दौरान बी पी एम मोहित गंगवार, बी सी पी एम विनय मिश्र तथा गर्भवती महिलाएं मौजूद रहीं|