विधानसभा 2017- फर्रुखाबाद की चारो विधानसभा में किस किस की इज्जत दांव पर

EDITORIALS Election-2017 FARRUKHABAD NEWS

फर्रुखाबाद: अब जबकि सपा, बसपा और भाजपा तीनो मुख्य दलो ने अपने अपने प्रत्याशियो की घोषणा कर दी है, सबसे ज्यादा सिटिंग विधायको की इज्जत दांव पर होगी| उन्हें अपनी न केवल गद्दी बचानी है बल्कि ये भी साबित करना है कि वे अपने वादे पर खरे उतरे थे| विपक्षियो को कम से कम पिछले पांच साल का हिसाब भले ही न देना हो मगर वे पीड़ित जनता के कितने काम आये ये तो बताना ही पड़ेगा| फिलहाल जैसा उत्तर प्रदेश में माहौल चल रहा है, विकास और विनाश की जगह कानून व्यवस्था और जात पात के मुद्दे पर ही वोट पड़ने वाला है| नेता गला फाड़ फाड़ कर मंचो पर और मीडिया में चिल्लायेगा मगर चुनाव प्रचार का प्रोग्राम केवल और केवल जात के हिसाब से ही बनाएगा| मगर अंत में फैसला फ्लोटिंग वोट पर ही होगा यानि की लहर किसकी| क्योंकि जात के आंकड़े तो सबही के पास है| और उस हिसाब से सभी जीतेंगे|

नोटबंदी कोई मुद्दा नहीं बनेगा अलबत्ता नोटबंदी से खर्चे में कमी जरूर होगी| खबर ये थी कि कुछ नेताओ ने ग्रामीण क्षेत्रो में कुछ खास प्रधानों के माध्यम से बैंको में 1000 और 500 के नॉट जमा कराये थे वे वापस नहीं आ पाए है| आपाधापी में और रिजर्व बैक की बंदिशों के कारण ज्यादातर नेताओ का पैसा जन धन खाते में जमा होने के कारण 5000/- प्रति खाता प्रति माह ही निकल पाया है और खाताधारक ग्रामीण क्षेत्रो की बैंको में सुबह से ही लाइन नेताओ के चक्कर में लगा हुआ है| नेताओ की साख इतनी गिर चुकी है कि अब ज्यादातर नेताओ को चुनाव में कोई उधार नहीं देता| कामगार अग्रिम पैसा लेकर ही नेताजी का काम करते है| क्योंकि जीत गया तो हनक में नहीं देता और हार गया तो फिर हार ही गया…..| कुल मिलाकर मामला अर्थव्यवस्था के आसपास खूब टिकेगा| क्योंकि चुनाव आयोग भी एक आदमी को कुर्सी पर बैठाने का 8 रुपया प्रत्याशी के खाते में जोड़ेगा ही|

कुल मिलाकर नोट एक बार फिर बाटेंगे| सिटिंग विधायको को अपना हिसाब देना ही होगा| बीच चुनाव में ये मुद्दा उठेगा| जनता, सोशल मीडिया और विपक्षी कमर कैसे बैठे है| विधायक निधि कैसे कैसे कहाँ खर्च की ये सवाल झूम के उठेगा| कितनी स्कूल को दी और कितने से सड़क नाली और हैण्डपम्प कराये| नेताओ को ये भी बताना होगा कि वे कमाते कैसे है, यानि की उनका सोर्स ऑफ़ इनकम क्या है| कुछ भी हो सकता है, खेती किसानी, जमीनों का धंधा, उद्योग व्यापार, कमीशनखोरी आदि आदि| अब पब्लिक सोशल मीडिया वाली है| बड़े मिर्ची लगने वाले सवाल सोशल मीडिया पर दागने वाले है| अखिलेश यादव की मोबाइल योजना में पंजीकरण कराने वाले सभी सपाई है ऐसा सोचना आत्ममुग्ध होने से अधिक कुछ नहीं होगा|

भाजपा के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री मोदी ने एक नयी लकीर पिछले तीन महीने में खींची है| अमीर और गरीब के बीच की चर्चा| इसका असर जरूर दिखेगा| ग्रामीण इलाको में सुबह और शाम को चौपार में जलती पोर (अलाव) पर इसके अलावा अभी भी कोई चर्चा नहीं है| बड़े आदमी पकडे गए| गरीब इसी बात से खुश है| परेशानी भले ही हुई हो मगर किया अच्छा| इस चर्चा पर सभी शामिल होते है इसमें पार्टीबंदी लागू नहीं होती| सपा काम गिनाएगी| बसपा कानून व्यवस्था पर चिल्लाएगी| भ्रष्टाचार पर दोनों चुप रहेंगे| क्यों? इस पर शोध बाकी है| दोनों दल चुनाव बाद एक दूसरे को जेल भेजने के दावे करेंगे और भूल जायेंगे| पहले ऐसा हो चुका है| कुल मिलाकर कुछ नया होने वाला है भूल जाइये| पुराने कलमकार मुलायम के साथी जो चुनावों में अपनी लेखनी से नेताओं की मरम्मत करते थे अबकी बार साइकिल चलाएंगे| मगर नगर में चलाएंगे या फिर विदेश में ये अभी कहना मुश्किल है| वैसे राजनीती कुछ भी कराये| बाप बेटे में फूट करा दे| चाचा भतीजे में दंगल करा दे| भाई से भाई लड़ा दे|

तो एक बार फिर से मैदान ए जंग में मेजर सुनील दत्त द्विवेदी और विजय सिंह, नरेन्द्र सिंह यादव और सुशील शाक्य, अजीत कठेरिया और अमर सिंह खटिक, नागेन्द्र सिंह राठौर और अरशद जमाल सिद्दीकी मुकाबले में हाजिर है| जाँचिये, परखिये और कीजिये विचार…

मिलते है अलगे लेख में…