ब्रह्मदत्त की मौत का कोलाहल- जिंदाबाद की जगह अमर रहे के नारे ने पैदा कर दी थी सिहरन..

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फर्रुखाबाद: “मौत स्वाभाविक होनी चाहिए| ऐसा नहीं होना चाहिए कि बड़ा भाई बैठा रहे और छोटा भाई चला जाए| द्विवेदी जी की मौत स्वाभाविक नहीं थी| अभी उनकी उम्र ही क्या थी| स्वस्थ शरीर| शांत स्वभाव और दबंग व्यक्तित्व| अभी उन्हें कई मैदान मारने थे| अभी कई लड़ाई जीतनी थी| कई किले फ़तेह करने थे|” बोलते बोलते पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की आँखे नम हो गयी| नगर की जिस सड़क और गलियो में ब्रह्मदत्त द्विवेदी जिंदाबाद के नारे लगते थे एक काली रात में सब कुछ बदल गया| किराना बाजार से लेकर लालगेट तक सड़के इंसानो और इंसानियत से भरी हुई थी और ब्रह्मदत्त द्विवेदी अमर रहे के नारो के सिवा दूसरी न कोई आवाज न कोई शोर…
20 साल पहले 10 फरवरी 1997 को सुबह 9 बजे द्विवेदी जी का शव उनके सेनापति स्ट्रीट स्थित आवास से खुली जिप्सी पर रखकर लोहाई रोड पर भारतीय पाठशाला में अंतिम दर्शनार्थ लाने के लिए लाया गया| प्रेमलता कटियार एक हाथ से बार बार गाड़ी में शांत लेटे द्विवेदी जी का हाथ छू रही थी तो दूसरे हाथ से निरंतर झर रहे नेत्रो को साफ़ कर रही थी| बागीश अग्निहोत्री जिप्सी के आगे रास्ता बना रहे थे| गली के इस ओर से उस छोर तक और सड़क से लेकर छतो और छज्जो पर खड़े होकर जनता द्विवेदी जी को अंतिम विदाई दे रही थी| नगर में पीएसी तैनात कर दी गयी थी| 5 ट्रक पीएसी ने चौक से लालगेट को कब्जे में ले लिया था| मगर न किसी को हटाने की जरुरत थी और न रास्ता साफ़ करने की| सब बात इशारो इशारो में हो रही थी| आधे घंटे में शव सेनापति स्ट्रीट से लोहाई रोड की भारतीय पाठशाला पहुच सका|
भारतीय पाठशाला के प्रांगण के बीचो बीच टेंट की एक छत तानी गयी थी| तखत पर द्विवेदी जी का शव रखा था| पीले गेंदे और लाल गुलाब से ढका हुआ| फूल मालाये ज्यादा हो जाती तो कुछ उतार दी जाती| अंतिम दर्शन के लिए यहीं पर अटल बिहारी बाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण अडवाणी एक ही हेलीकाप्टर से आये थे| पुलिस लाइन से भाजपा के तीनो दिग्गज नेता भारतीय पाठशाला पहुचे| सीढ़ियों से पैदल चलते हुए प्रांगण तक पहुचते पहुचते अटल जी की आँखे नम हो चुकी थी| साथ के सुरक्षा कर्मी ने उन्हें रुमाल थमाया| तीनो नेताओ ने पुष्प चक्र द्विवेदी जी को अर्पित किया| कैमरामेन कई कुर्सियों पर खड़े होकर वो अंतिम दृश्य अपने कैमेरे में कैद कर लेना चाहते थे| फोटोग्राफर मुकेश शुक्ल कैमेरे बदल बदल कर फ़ोटो खीच रहे थे| उस ज़माने में रील वाले कैमेरे होते थे| एक कैमेरे की रील ख़त्म हो जाती तब तक सहयोगी दूसरे कैमेरे में रील डाल कर कैमेरा दे देता| लोग अंतिम दर्शन में आते, द्विवेदी जी को प्रणाम करते और हट जाते दूसरो को मौका देने के लिए| कई घंटे तक ये सिलसिला चला और फिर अंतिम यात्रा शुरू हुई|
जब मौत के दरवाजे के आगे से द्विवेदी जी का शवयात्रा गुजारी तो हर एक की निगाह उस स्थान पर एक बार गयी जहाँ द्विवेदी जी को मौत के घाट उतार दिया गया था| उस मकान में सजे हुए गेंदे के फूल द्विवेदी जी के साथ ही मुरझा चुके थे| कल तक जो फूल अपने मेहमानो के स्वागत के लिए सजाये गए थे आज वे अंतिम विदाई दे रहे थे| नाले मच्छरट्टे से चौक और चौक से लालगेट की तरफ केवल एक तरफ ही आवागमन हो रहा था| अंतिम यात्रा में रास्ते एकतरफा हो चले थे| कोई एक आदमी भी सड़को पर दूसरी तरफ से वापस नहीं चल रहा था|
इतिहास में पहली बार था जब सुरक्षा व्यस्था अब प्रदेश के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी डीजीपी हरिदास राव खुद सम्भाले हुए थे| क्या कांग्रेसी, क्या बसपाई कोई तो नहीं था जो दिखा न हो उस अंतिम यात्रा में| किस किस का नाम लिखा जाए| कुछ चंद लोगो को छोड़कर| राजनैतिक रूप से विरोध करने वाले भी हैरान थे| व्यापारियो ने बाजार नहीं खोला| बंद दुकाने मनो अपने नेता को श्रद्धांजलि दे रही हो| अनायास हुई हत्या पर स्तब्ध था फर्रुखाबाद| किसने की हत्या? क्यों की हत्या? और कैसे हुई हत्या? इन सभी सवालो का जबाब एक ख़ामोशी थी जो अंतिम यात्रा के रूप में शांत गाड़ी पर लेटी हुई थी…..और रास्ते भर नारे लग रहे थे– जब तक सूरज चांद रहेगा, ब्रह्मदत्त जी का नाम रहेगा….