बुद्ध पूर्णिमा: बुद्ध के उपदेशों को जीवन में उतारें

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वैशाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन बुद्ध जयंती का पर्व भी मनाया जाता है। बौद्धधर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध भगवान विष्णु के ही अवतार थे ऐसी मान्यता है परंतु पुराणों में वर्णित भगवान बुद्धदेव का प्राकट्य गया के समीप कीकट में हुआ बताया गया है और उनके पिता का नाम अजन बताया गया है। यह प्रसंग पुराण वर्णित बुद्धावतार का ही है।

उनके स्वरूप को लेकर भी हिन्दू तथा बौद्ध मतों में कुछ भिन्नता व कटुता है। बौद्ध मत के अनुसार महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में नेपाल की तराई में लुम्बिनी में हुआ था। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। अपने शुरुआती दिनों में रोगी, बूढ़ा और मृत शरीर को देखकर उन्हें वितृष्णा हुई। राजपरिवार में जन्म लेकर भी उन्होंने जीवन की सारी सुविधाओं का त्याग कर सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हेतु बोधगया में कठोर तप किया और बुद्ध कहलाए।

उनके समकालीन शक्तिशाली मगध साम्राज्य के शासक बिम्बिसार तथा अजातशत्रु ने बुद्ध के संघ का अनुसरण किया। बाद में सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को श्रीलंका, जापान, तिब्बत तथा चीन तक फैलाया। ज्ञान प्राप्ति पश्चात भगवान बुद्ध ने राजगीर, वैशाली, लौरिया तथा सारनाथ में अपना जीवन बिताया। उन्होने सारनाथ में अंतिम उपदेश देकर अपना शरीर त्याग दिया। आज बौद्ध धर्म दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है।