पटाखों के सुप्रीम फैसले पर शासन कैसे कराएगा अमल

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नई दिल्‍ली:सुप्रीम कोर्ट ने दिल्‍ली एनसीआर में दो घंटे के अंदर पटाखे जलाने को अनुमति देकर कई तरह के सवालों को हवा दे दी है। इनमें सबसे पहले और बड़ा सवाल तो यही है कि जो मियाद सुप्रीम कोर्ट ने रखी है उस पर अमल करवाने के लिए क्‍यों कोई एजेंसी है। यदि है तो क्‍या वह दिल्‍ली में दो घंटे के बाद या पहले छोड़े-जाने वाले पटाखों को रोक सकती है। वहीं एक दूसरा अहम सवाल ये भी है कि जिन ग्रीन पटाखों को छोड़े जाने की बात सुप्रीम कोर्ट की तरफ से उसके बारे में पटाखा व्‍यापारी जानते तक नहीं हैं। तीसरा सवाल ये भी है कि जिस समय यह आदेश आया है तब तक करोड़ों का पटाखा तैयार किया जा चुका है और बाजार में पहुंच भी चुका है, ऐसे में इस समय इस तरह के आदेश आने का कितना असर होगा यह सभी जानते हैं। आपको यहां पर ये भी बता दें कि देश में पटाखा कारोबार करीब बीस हजार करोड़ रुपए का है। इसमें करीब पांच हजार करोड़ की आतिशबाजी चीन से भी आती है। इसको बनाने का ज्‍यादातर काम असंगठित क्षेत्र में ही होता है।
सिवाकासी आतिशबाजी बनाने में सबसे आगे
यहां पर ये भी जानना जरूरी है कि दक्षिण भारत के राज्‍य तमिलनाडु में स्थित सिवाकासी आतिशबाजी बनाने में सबसे आगे है। यहां पर करीब ढाई से तीन लाख लोग इस कारोबार से किसी न किसी तरह से जुड़े हुए हैं। यहां से अकेले आतिशबाजी का करीब 20 बिलियन रुपए का कारोबार होता है। देश के बाजारों में मिलने वाले आतिशबाजी के ज्‍यादातर ब्रांड यहीं पर बनते हैं। लेकिन कोर्ट के ताजा फैसले ने यहां इस कारोबार से जुड़े लोगों को निराश किया है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि यहां के लोगों का जीवन-यापन का यह बड़ा स्रोत है। आपको याद होगा कि पिछले वर्ष भी कोर्ट ने दिल्‍ली एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। ऐसे में उन व्‍यापारियों को लाखों का घाटा हुआ था जिन्‍होंने अपने पास में दीवाली के लिए पटाखों का स्‍टॉक लेकर पहले से ही रख लिया था। इस बार भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश से यहां के कारोबारी खासा नाराज हैं। वहीं दिल्‍ली एनसीआर में पटाखा बेच रहे व्‍यापारियों के पास पिछले वर्ष का ही काफी सामान रखा है जिसको वह इस बार बाजार में नए दाम पर निकाल रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक 50 लाख किलोग्राम पटाखों का स्टॉक कारोबारियों के पास पिछले वर्ष का ही बचा हुआ है। ऐसे में पटाखा कारोबारी होने वाले नुकसान से भी दुखी हैं।
व्‍यापारी नहीं जानते ग्रीन पटाखों की परिभाषा
वहीं दिल्‍ली-एनसीआर में बाजारों में दुकादारों को ग्रीन पटाखों के बारे में कुछ पता ही नहीं है। कुछ दुकानदार फुलझड़ी, अनार और चरखी को ही ग्रीन पटाखा बताकर बेच रहे हैं। वहीं पटाखा एसोसिएशन का कहना है कि यह ग्रीन पटाखों की श्रेणी में नहीं आते। लिहाजा ग्रीन पटाखों को लेकर बाजार में असमंजस की स्थिति है। ग्रीन पटाखे को लेकर दैनिक जागरण ने कई व्‍यापारियों से बात की। इनमें से ज्‍यादातर व्‍यापारियों का कहना था कि कोर्ट के आदेश से बाजार में आतिशबाजी की बिक्री पर असर पड़ा है। व्‍यापारियों के मुताबिक अभी 2016 और 2017 का भी स्‍टॉक बचा हुआ है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बाजार में और अधिक गिरावट आई है। इनके मुताबिक आदेश से पहले बाजार में लोग इस डर से आ रहे थे कहीं पिछले वर्ष की ही तरह इस बार भी इन पर प्रतिबंध न लग जाए। लेकिन आदेश के बाद बाजार में ठंडक है।
ग्रीन पटाखों की मांग
कुछ लोग आकर ग्रीन पटाखे भी मांग रहे हैं। लेकिन चूंकि ग्रीन पटाखे इससे पहले सुने ही नहीं है, लिहाजा बाजार में असमंजस की स्थिति है। दिल्‍ली में आतिशबाजी के होलसेल व्‍यापार से जुड़ी मैजेस्टिक फायर वर्क्‍स के मालिक के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ही ग्रीन पटाखों को लेकर गाइड लाइन तय करेगा तभी इसकी परिभाषा भी तय हो सकेगी। फिलहाल बाजार में मंदी है। श्रीवास्‍तव के मुताबिक कोर्ट के आदेश के बाद व्‍यापारी नुकसान को लेकर सहमे हुए हैं। वहीं दिल्ली फायर वर्क्स एंड जनरल ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन के प्रधान नीरज गुप्ता का भी यही मानना है इससे पहले ग्रीन पटाखा नाम की कोई चीज सुनने को मिली है। उनका कहना है कि इस साल तो कम से कम इस तरह के पटाखों का आना नामुमकिन है, लेकिन हो सकता है कि कोर्ट की सख्‍ती के बाद अगले वर्ष तक इस तरह के पटाखे बाजार में आ जाएं।
पैसो से मान्‍यता प्राप्‍त आतिशबाजी
आपको बता दें कि फिलहाल बाजार में जो आतिशबाजी बिक रही है वह केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन आने वाले पेट्रोलियम तथा विस्फोटक सुरक्षा संगठन (पेसो) से मान्यता प्राप्त है। पैसो ही पटाखों के उत्पादन और बिक्री की नियमावली तय करती है। यह नियमावली 2005 में तैयार की गई थी, जिसके मुताबिक तय मानकों के आधार पर खरा उतरने वाले पटाखे ही बाजार में बेचे जा सकते हैं। आपको यहां पर ये भी बता दें कि ज्‍यादातर व्‍यापारी इस बात से भी इत्‍तफाक रखते हैं कि चीन से आने वाले पटाखे भारत में बनने वाले पटाखों की तुलना में अधिक प्रदूषण फैलाते हैं।
क्‍या होते हैं ग्रीन पटाखे
इन सभी के बीच ग्रीन पटाखों को लेकर जो बहस छिड़ी है उसका असर आने वाले समय में जरूर दिखाई देगा। लेकिन इससे पहले हम आपको उस सवाल का जवाब दिए देते हैं जो सभी के मन में उठ रहा है। यह सवाल ग्रीन पटाखों को लेकर है। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने जिन ग्रीन पटाखों का जिक्र अपने आदेश में किया है वह दरहसल, पर्यावरण को देखते हुए किया गया है। दिल्‍ली एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण की वजह से ही कोर्ट ने इस तरह के पटाखे जलाने का आदेश पारित किया है। ग्रीन पटाखों से कोर्ट का अर्थ वह पटाखे जिनके जलने और चलाने पर कम प्रदूषण होता हो ही है। यह पटाखे सामान्य पटाखों की तरह होते हैं। इनको जलाने पर नाइट्रोजन और सल्फर ऑक्साइड गैस का कम उर्त्सजन होता है। इन पटाखों को तैयार करने में एल्यूमीनियम का कम प्रयोग होता है। इनके लिए खास रसायन का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा इनके धमाकों की आवाज भी दूसरे पटाखों के मुकाबले कम होती है। इसके अलावा इनसे निकलने वाला धुआं भी दूसरे पटाखों के मुकाबले कम होता है।