यक्षप्रश्न- क्या सरकार खुद करा रही भ्रष्टाचार?

FARRUKHABAD NEWS

फर्रुखाबाद: जरुरी नहीं कि सत्ता बदलने के बाद सब कुछ बदल गया| और ऐसा भी नहीं कि कुछ नहीं बदला| मगर जितना बदलना चाहिए उतना नहीं बदला| बदलने पर गौर करे तो जीवन की सबसे न्यूनतम जरूरतों में स्वास्थ्य, शिक्षा और भोजन में सबसे पहले बदलाब की जरुरत थी| इन तीनो की अगर तुलना करे तो सबसे बड़ा बदलाब खाद्य एवं आपूर्ति में आया और सबसे कम या कहें न के बराबर शिक्षा में|

खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अंतर्गत चलने वाली सस्ते राशन की दुकानों पर जहाँ दो साल पहले ज्यादातर केवल त्योहारों पर चीनी मिलने को ही राशन वितरण मान लिया जाता था वही व्यवस्था अब कम से कम हर माह राशन बटने की तो हो ही गयी है| खाद्य एवं आपूर्ति विभाग में भ्रष्टाचार की व्यवस्था नीचे से शुरू होकर जिले के टॉप तक थी| मगर इसमें अब कुछ कमी आई है| ये बात और है कि राशन बटने में अब भ्रष्टाचार केवल कम यूनिट का राशन देकर या घटतौली कर किया जाता है और स्कूलों में बटने वाले राशन में गोलमाल करके किया जा रहा है| लेकिन भैस सहित खोया वाली स्थिति अब खाद्य एवं आपूर्ति विभाग की नहीं बची|

व्यवस्था सुधारने में भागीरथी प्रयत्न क्यों नहीं करते आप?

बात अगर शिक्षा की करे तो इसमें प्राथमिक शिक्षा में कोई बदलाव नहीं आया| जो शिक्षक पढ़ाने के शौक़ीन है वे पहले भी पढ़ाते थे और अब भी पढ़ाते है| जो पहले भी बिना पढ़ाए वेतन लेते थे वे आज भी लेते है| जो मास्टर सिर्फ विभाग की ठेकेदारी पहले करते थे वे आज भी करते है| पहले भी बेसिक शिक्षा अधिकारी लाखो लगाकर आता था आज भी आता है| पहले भी ड्रेस, खेल कूद का सामान और पठन पाठन सामग्री में लोग ठेकेदारी करते थे अब भी करते है| कोई स्वीटर में चोरी करता है तो कोई जूते में अपनी आर्थिक सम्रद्धि देख रहा है| कोई पुताई में तो कोई प्रशिक्षण कराने में| कुल मिलाकर प्राथमिक शिक्षा में कोई बदलाव नहीं आया पहले भी प्राइवेट स्कूलों में किताबो का धंधा होता था इस साल भी हुआ| ऐसा नहीं कि अफसर नहीं जानते| जिले के सारे अफसर जानते है| आखिर इनके बच्चे भी किसी न किसी कान्वेंट स्कूल में ही पढ़ते है| मगर ये व्यवस्था सुधारने में भागीरथी प्रयत्न नहीं करते| सवाल यही है कि आखिर क्यों? क्या इस पूरे भ्रष्ट तंत्र में ये हिस्सेदार होते है या फिर एक कड़ी भर| सवाल उठाना लाजिमी है क्योंकि बच्चे जब टीवी पर भ्रष्टाचार या कुछ गलत देखते है तो सवाल करते है कि पापा फलां अफसर व्यवस्था क्यों सही नहीं करते|

बात ये सब उठी है तो उसके पीछे कुछ तार्किक तथ्य है| मंगलवार को बेसिक शिक्षा विभाग में चलने वाली एक अध्यापको की यूनियन राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने मुख्य विकास अधिकारी को ज्ञापन सौप जो मांगे सौपी वे अपने आप में कई सवाल खड़े करती है|

ज्ञापन के अनुसार स्कूलों में बनने वाले मिड डे मील के लिए दिया जाने वाला गेंहू अक्टूबर, नवम्बर और दिसम्बर माह का आया ही नहीं| तो फिर बच्चो को मिड डे मील कहाँ से दिया गया या उनके लिए खाना कहाँ से बना? अब अगर बना नहीं तो रिपोर्ट क्या फर्जी थी? और अगर बना तो उसके लिए गेंहू कहाँ से आया? अगर मास्टर ने अपनी जेब से बनबाया तो फिर हर विभाग में कर्मचारी और अधिकारी को यही करना चाहिए| स्वास्थ्य विभाग में दवाइयां कम पड़ने पर डॉक्टर को अपनी जेब से खरीद कर इलाज करना चाहिए, अगर एक मास्टर अपने बच्चो का पेट अपनी जेब से भर सकता है तो फिर डॉक्टर तो प्राइवेट प्रक्टिस कर उपरी कमाई भी कर लेता है वो दवाई अपनी जेब से क्यों नहीं बाट सकता? मगर सवाल इस बात का नहीं है कि क्या सही है और क्या गलत? सवाल तो उन अफसरों पर जो जिले की व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए जिले में भेजे जाते है| मगर वे जिले में आम आदमी की न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने में प्रयास करने की जगह अपने अधिकतम में लग जाते है क्या?

ज्ञापन के अनुसार वर्ष 2017-18 में बाटी गयी निशुल्क ड्रेस का 25%भुगतान आज भी लगभग 350 स्कूलों का शेष है? 2018-19 के वित्तीय वर्ष में जूनियर स्कूलों की ड्रेस का 25% बाकी है| ये पैसा विद्यालय प्रबंध समिति के खातो में जाता है और उसके माध्यम से चेक द्वारा भुगतान होता है| शिक्षको का 2 वर्ष का बोनस नहीं दिया गया ऐसा भी ज्ञापन में लिखा है| तो सवाल ये है कि आप शिक्षको पर शिकंजा क्या सिर्फ उनकी गलतियों से वसूली के लिए कसना चाहते है? क्योंकि उनकी उपरोक्त जायज शिकायतों के लिए जिम्मेदार तो अफसर ही है| और अगर उपरोक्त मामलो में भ्रष्टाचार था तो उसकी मलाई भी आपने चाटी थी ये भी आज सोशल मीडिया के जमाने छिपा नहीं है… खैर मर्जी आपकी व्यवस्था सुधारो या फजीहत कराओ………………..