राजनीति के समधियाना सम्बन्ध, दिल चाह नहीं रहा फिर भी प्रचार जरुरी था

Uncategorized

Editorराजनीती में विरोधियो से मुलाकातों और सम्बन्धो को समधियाना संबंधो के तौर पर देखा जा सकता है| कई देशों के आपसी संबंध समधियों के संबंधों जैसे लगते हैं कि दिल भी नहीं चाह रहा, मगर न्योता भेजना भी ज़रूरी है| लोकसभा चुनावो में भी यही कुछ देखने को मिलता है| दिल चाह नहीं रहा था मगर फिर भी लोकलाज के चलते प्रचार जरुरी था|

एक समधी समिधियाने में ही हार गए तो दूसरे बिना आये ही जीत गए| मसला सपा और भाजपा का है| ज्ञात हो कि भाजपा के कल्याण सिंह का सामियाना फर्रुखाबाद नगर के लिंजिगंज मोहल्ले में है| राजवीर की ससुराल में भाजपा को झोली भर के कमल मिले| तो सपा प्रत्याशी का समिधियाना कायमगंज में| चिलौली में गिनती दहाई से आगे न बढ़ सकी| चर्चा और बहस इसी बात पर वे भी पूरे चुनाव में करते रहे जो प्रत्याशी और उनके कुनबे के लोगो के सामने मुह खोलने से पहरेज करते रहे कि अभी तो उनकी थाने चौकी में खुद की चल जाती है| कहीं जीत गए तो छोटे मोटे काम के लिए भी उन्ही के दरबार में जाना पड़ेगा| सच जरा कडुआ होता है मगर होता सच है| उस्ताद ने भी उस्तादी इसी कारण दिखाई है ये विचार करने योग्य बात है|

ऐसा ही द्रश्य कुछ अंतर्राष्ट्रीय स्तर भी देखने को मिल रहा है| दिल नहीं मान रहा लेकिन न्योता मिलने पर ख़ुद नहीं जाना तो किसी भाई-भतीजे या मुंशी को ज़रूर भिजवाना है| ताकि बात भी रह जाए और लाठी भी न टूटे| ऐसे ही दो समधी भारत और पाकिस्तान भी हैं| क्या ज़माना था कि नेहरू जी आराम से लियाकत-नेहरू पैक्ट और सिंध समझौते वगैरह के लिए या या कभी-कभार यूरोप आते-जाते रिफ़्यूलिंग के बहाने कराची में ठहर जाते और प्रधानमंत्री लियाकत अली ख़ान और सुहरावर्दी वगैरह भी अक्सर कराची से ढाका जाते-जाते पालम या कोलकाता में ज़रूर चाय पीने रुक जाते|

किसी को नाक-वाक का कोई मसला नहीं था क्योंकि सबको सबकी नाकों का साइज़ मालूम था| लेकिन 1965 के युद्ध के बाद स्थिति बदल गई| शास्त्री-अयूब ख़ान बातचीत कराची या दिल्ली के बजाय ताशकंद के अजनबी माहौल में हुई| भुट्टो को मजबूरी में शिमला जाना पड़ा| ज़िया उल हक को जनरल सुंदरजी की ब्रासटेक्स फौजी मश्कों से पैदा होने वाली गर्मी दूर करने के लिए जयपुर में बिन बुलाए क्रिकेट मैच देखना पड़ा और फिर अजमेरी पिया के दरबार में फूलों की चादर भी चढ़ाई|

करगिल और बंबई का रूट
राजीव गांधी सार्क सम्मलेन के बहाने ही इस्लामाबाद गए, मगर गए तो| और वाजपेयी जी का भी बड़प्पन है कि उन्होंने पहले श्रीनगर में एक तकरीर में मुस्कराते हुए कहा एक बार मिल तो लें और फिर बस में बैठकर लाहौर चले गए| उसके बाद कोई नहीं गया क्योंकि बीच में करगिल और बंबई का रूट पड़ गया था|

फिर भी भला हो क्रिकेट, संयुक्त राष्ट्र जनरल एसेंबली की सालाना बैठक और इससे भी ज़्यादा सार्क संस्था का कि जितनी भी किसी के मुंह में कड़वाहट हो पर दुनिया दिखावे के लिए ‘हैलो, आप कैसे हैं’ ‘जी, मैं ठीक हूं’ तो कहना ही पड़ता है ताकि समधियों की नाक रह जाए| इसी ‘हैलो हाय’ में कभी कुछ न कुछ अच्छाई भी निकल आती है|

जैसे जनवरी 2002 में अगर परवेज़ मुशर्रफ़ गोली की तरह अपनी सीट से उठकर ठंडे-ठंडे वाजपेयी की तरफ गर्म हाथ लंबा न करते, तो काठमांडू का सार्क सम्मेलन जम्हाइयों पर ही ख़त्म हो जाता| लेकिन इस एक मुशर्रफ़ी हरकत से दिल्ली वाया आगरा का रास्ता खुल गया| भले अहम समय पर बर्फ़ पड़ गई, मगर ठहरे पानी में कंकड़ तो पड़ा| उसके बाद पाकिस्तान के भूतपूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी हों कि राजा परवेज़ अशरफ़ से पहले राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी, सब दिल्ली आए|
न्योता
मगर अब तो 16 बरस होने को आए कि वाजपेयी जी के बाद इधर से कोई नहीं गया और आडवाणी जी और जसवंत सिंह ने तो पाकिस्तान में जाकर अपने लिए जिस तरह का विवाद खड़ा कर लिया, उसके बाद से तो जो जाता हो वो भी न जाए| इस वक़्त नरेंद्र मोदी के न्योते को इस्लामाबाद में उलट-पुलटकर देखा जा रहा है| आपस में सिवाए इसके और क्या चला होगा कि सभी सार्कियों को बुलाया है इसलिए जाने में कोई हर्ज़ नहीं|

मियां साहब सोच लें ये कहीं कोई नई चाल तो नहीं| जनरल राहिल शरीफ़ से भी सलाह कर लें तो अच्छा है क्योंकि जब आपने पिछले साल प्रधानमंत्री की शपथ लेने से पहले मनमोहन सिंह को बुलाने का इशारा किया था तो कई त्योरियों पर बल आ गए थे और फिर आज तक भारत को सबसे पसंदीदा देश का दर्जा देने का मामला भी…आं ऊं ईं…में ही अटका हुआ है और आपकी तो वैसे भी अंदरखाने इन दिनों टेंशन चल रही है|

तो राजनैतिक रिश्ते समधियाने के रिश्तो से कमतर नहीं होते| मगर समधियाने के रिश्तो में हमेशा घाटा छोटे रिश्तेदार को ही होता है| खैर खुशामद और जेब का माल खर्च करने के बाद भी समधी कभी संतुष्ट नहीं होते| अब दोस्तों को बताने से क्या फायदा कि इतने लाख फूक दिए, एड़ी चोटी का जोर लगा दिया| मगर समधी को मजा नहीं आया|

[bannergarden id=”8″] [bannergarden id=”11″]