राजनीति का खंजर- “केवल चार बचेंगे”

EDITORIALS Election-2017 FARRUKHABAD NEWS

पांच साल तक नेताओ के हाथ में रहने वाला राजनैतिक खंजर एक दिन मतदाताओ के हाथ में रहता है| मतदान के दिन ये खंजर किस किस पर कैसे कैसे चलेगा ये वोटिंग मशीन में ही गुप्त रूप से दर्ज हो जायेगा| बात उत्तर प्रदेश के आम विधानसभा चुनाव 2017 के जनपद फर्रुखाबाद की चार विधानसभाओ के परिपेक्ष्य में है| लिहाजा केवल चार बचेंगे और बाकी सब प्रत्याशी राजनीति के खंजर से घायल हो मैदान से बाहर हो जायेंगे| लोकतंत्र के पवित्र मतदान में खंजर शब्द का इस्तेमाल कुछ अजीब लग सकता है| मगर जिस तरह नेताओ ने पिछले सत्तर साल में सत्ता पाने के बाद जनता को भूल अपने लिए ही साधन जुटाने में प्राथमिकता दिखाई है “खंजर” शब्द माकूल लगता है| नेताओ के भ्रम को मतदाता तोड़ेगा और पांच साल में मिले कष्टों का भी आंकलन करने वाला है| चुनावी बुखार से पीड़ित सत्ताधारी “मुफ्त” माल से मतदाता को आकर्षित कर रहा है वहीँ विपक्ष सरकार की नाकामियों को कुरेद कुरेद कर खंजर की धार पैनी करने में जुटा रहा|

बात फर्रुखाबाद की चार विधानसभाओ में 19 को होने वाले मतदान के परिपेक्ष्य में है| वर्ष 2012 में अखिलेश यादव ने सत्ता संभाली| चुनाव में अखिलेश को लगभग हर वर्ग और युवाओ ने जमकर मतदान किया| वादे के अनुसार अखिलेश यादव ने हर 2012 के इंटरमीडिएट पास युवा को खूब ढोल पीट कर लैपटॉप बाट दिए| ढोल पीटने की बात इसलिए क्योंकि लैपटॉप बाटने में प्रचार और तरीके पर ही कुल लैपटॉप कीमत का 15 फ़ीसदी खर्च इस पर आया था जो लगभग 100 करोड़ से ऊपर का था| इसके बाद के वर्षो में पास हुए सभी इंटरमीडिएट छात्र छात्राओं को ये मुफ्त माल नसीब नहीं हुआ| बात समझने की ये है कि मुफ्त लैपटॉप योजना एक चुनावी गिफ्ट था न की सरकार की कोई योजना| योजना होती तो हर साल उतने ही बच्चो को लैपटॉप मिलता जितने की पहली बार मिले थे| खैर चुनावी वादा तो अखिलेश सरकार ने पूरा कर दिया|

बात मुफ्त में मिले माल की वफ़ादारी दिखाने का आया तो यूपी के मतदाता ने लोकसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी को ठेंगा दिखा दिया| पूरे उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के वादे पर मिले सरकारी लैपटॉप पर मोदी का लाइव टेलीकास्ट देखा और भाजपा को सत्तर सीट से जितवा दिया| ये मतदाताओ का राजनैतिक खंजर ही था जो उसने सपा की पीठ में भोका था| और केवल मुलायम के परिवार को छोड़ कर कोई चुनाव नहीं जीत सका| वर्ष 2014 में सरकारी प्राइमरी स्कूल की लम्बे समय से लटकी नौकरी से लेकर उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक अफसरों के चयन आयोग में गड़बड़ी का मुद्दा शबाब पर था| युवा एक अदद नौकरी की तलाश में एक एक नौकरी के लिए लाखो रुपये खर्च कर चुका था| मगर भर्ती प्रक्रिया में इतने पेच होते कि नतीजा अदालतों में लटक जाता था| बात यहाँ तक पहुची की नाराज अभ्यर्थियो ने चयन के आयोग के बोर्ड पर “यादव आयोग” तक लिख दिया| केवल एक जाति विशेष को ही नौकरी में प्राथमिकता के आरोप लगने लगे| कहने का मतलब ये है कि पढ़े लिखे बेरोजगार युवा को मुफ्त का लैपटॉप या मोबाइल नहीं एक अदद नौकरी चाहिए| रोजगार के अवसर न के बराबर रहे|

विकास की बात करे तो जनपद फर्रुखाबाद में मुख्यालय को राज्य मार्ग से जोड़ने के लिए सडको का निर्माण हुआ| मगर मोहम्दाबाद से बेवर रोड की खस्ताहालत सड़क भ्रष्टाचार की चर्चा को गरम कर देती है| छोटे मोटे खडंजे नाली को छोड़ दे तो विधायको ने विधायक निधि का दो तिहाई से ज्यादा हिस्सा निजी स्कूलों के हवाले कर दिया| निजी स्कूलों को विधायक निधि या सांसद निधि बिना सुविधा शुल्क लिए मिल जाती हो ऐसा बहुत कम सुनने को मिला है| नगर की ठंडी सड़क जिस पर जिले का सबसे बड़ा ट्रांसपोर्ट का कारोबार होता है गड्डो के हवाले ही रही| हाँ 35 हजार महिलाओ को समाजवादी पेंशन जरुर मिली| मगर इसमें भी तमाम जरुरतमंदो के आवेदन तभी स्वीकृत हो पाए जब उन्होंने प्रधानो और सूची पास करने वालो को कुछ भेट चढ़ाई| यही हाल कमोवेश हर सरकारी योजना का रहा| समाज कल्याण विभाग जिसके कंधो पर मुफ्त माल बाटने की जिम्मेदारी होती है वहां तक जिसका आवेदन बिना रिश्वत के पास होता हुआ पहुच गया तो उससे ज्यादा किस्मत वाला कोई नहीं था|

तो बात राजनीति के खंजर की है जो अब मतदाता के हाथ में है| विकास का एक और शानदार उदहारण लेते है| नगर क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे निर्दलीय प्रत्याशी मनोज अग्रवाल की पत्नी वत्सला अग्रवाल नगरपालिका की चेयरपर्सन है| नगरपालिका के अंतर्गत म्युनिसिपल अन्तर कॉलेज संचालित होता है| जिसके टूटे कक्षों के निर्माण के लिए छात्र संगठनों ने आमरण अनशन तक कर दिया| मगर टूटे कमरे न बन सके, अलबत्ता कथित शिक्षा प्रेमी विधान परिषद् सदस्य रहे मनोज अग्रवाल की विधायक निधि का 80 फ़ीसदी से ज्यादा का हिस्सा निजी स्कूलों को दिया था| अब जनता इसे भूल जाए ये कैसे हो सकता है कि आपने सरकारी स्कूल को चवन्नी देने में उदारता और फूर्ती नहीं दिखाई थी? जनता को याद भी रखना चाहिए| क्या ये विषय के नेता की जनता और समाज के प्रति उसकी ईमानदारी में शंका नहीं पैदा करता| खैर राजनीति का खंजर अब मतदाता के हाथ में है| मनोज अग्रवाल ने नगर में लगभग हर गली और नाली पक्की करा दी| दस साल से नगरपालिका पर उनके परिवार की सत्ता है| शहर पहले के मुकाबले साफ़ सुथरा हुआ| पीने के पानी की उपलब्धता भी बढ़ी| इसी के लिए जनता ने उन्हें चुना था| मगर इसलिए नहीं चुना था कि स्टील के सुन्दर बस अड्डे बाजार भाव से 40 फ़ीसदी महगे लगवाकर जनता के टैक्स का पैसा लुटा दो| जलकल विभाग में मोबाइल आधारित ऑटोमेटिक स्वचालित सिस्टम को बाजार भाव से 10 गुना महगा खरीद कर धन का गोलमाल कर लो| जनता को हिसाब भी चाहिए| हर गद्दीनशी को हिसाब देना ही होगा| राजनीति का खंजर मतदाता के हाथ में है और उसकी ख़ामोशी एक तूफ़ान का इशारा कर रही है|

नोटबंदी में केंद्र की सरकार ने आम आदमी को लाइन में लगवा दिया| आम आदमी बिना किसी आक्रोश के लाइन में लग गया| मात्र इस उम्मीद में कि भ्रष्टाचार रुकेगा, सरकार का टैक्स बढ़ेगा और उस पैसे से आम आदमी की न्यनतम जरूरते सरकार पूरी करेगी| अब विपक्ष उस पर चुटकी ले रहा है| कितना काला धन आया| अलबत्ता भाजपा जबाब दे रही है कि आ रहा है थोडा इन्तजार करिए| आखिर कितना इन्तजार? जबाब परिवर्तन की उम्मीद लगाये बैठी भाजपा को भी आने वाले समय में देना होगा|

समाजवादी पार्टी को सबसे बड़ा इम्तिहान देना है| जनपद की चारो विधानसभाओ पर उसका कब्ज़ा है| पांच साल में अवैध खनन, जमीनों के कब्जे, विरोधियो पर फर्जी मुकदमे और जिसने सरकार के पक्ष में नहीं बोला उसकी सरकारी सुविधाओ से कटौती| ये जमीनी मुद्दे है| चुनाव में कर्ज माफ़ी, मुफ्त माल और चुनावी लालीपॉप से ज्यादा ये मुद्दे काम करते है| पांच साल में समाजवादी पार्टी में जमकर रार भी हुई| बाहर से आये नेताओ ने समाजवादी पार्टी में दो फाड़ करा दिए| जो चुनाव तक आते आते आते तीन हो गए| अखिलेश गुट, शिवपाल गुट और तीसरा गुट| समाजवादी पार्टी इस चुनाव में आंतरिक संकट में है| पूरे चुनाव प्रचार में अखिलेश यादव की जनसभा के अलावा दूसरे किसी नेता ने कोई असर नहीं किया| फर्रुखाबाद की सपा में तीनो गुटों को अपने अपने अस्तित्व की चिंता है| ऊपर से चारो विधायको का रिपोर्ट कार्ड भी कोई खास मुकाम नहीं बना पाया| कायमगंज के विधायक की टिकेट काट कर भाजपा के आयातित प्रत्याशी सुरभि दोहरे गंगवार को दी गयी जिनकी पूरी ताकत अपने सजातीय कुर्मी वोट को अपने लिए लामबंद करने में ही लगी रही| सपा को कायमगंज में विधायक रहे अजीत का भी हिसाब देना है और कई गुटों से मुकाबला भी करना है| कमोवेश सपा के लिए सभी विधानसभा क्षेत्रो में एक जैसी चुनौतिया है|

राजनीति कौशल के खिलाड़ी इतने चतुर निकलते है कि अपनी नाकामियों के किस्सों को अपने बाजू में इस बात से छिपाते है कि दाग उनके विपक्ष से कम है| मायावती की सरकार में भ्रष्टाचार के आसमान छूते भाव से मुखर होकर जनता ने युवा अखिलेश यादव को गद्दी सौपी तो जमीनों के कब्जे, भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था पर सवाल उठे| जनता तो जनता है| अगर नेता प्रयोग करता है तो जनता भी करती ही है| चुनाव को जात पात में धकेल कर असल मुद्दों को पटरी से उतारने की कोशिश भले ही नेता करते हो मगर आखिरी फैसला मतदाता को ही करना है जिसके हाथ में एक दिन के लिए ही सही राजनीति का खंजर रुपी वोटिंग मशीन का बटन तो है….